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वंशपालनपुरे श्रीविजयरत्नसूरिं प्रति उदयपुरतो वृद्धिविजयलिखितो विज्ञप्तिलेखः
- सं. मुनि सुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजय
१४२ श्लोकोमां विस्तरेल प्रस्तुत पत्र श्रीविजयरत्नसूरिजी उपर वृद्धिविजयजीए लखेल काव्यमय विज्ञप्तिरूप छे.
अनुसन्धान- ६४
अन्य विज्ञप्तिपत्रोनी जेम प्रस्तुत विज्ञप्तिपत्र पण विज्ञप्तिपत्रनी लेखनपरिपाटीने सम्पूर्णपणे अनुसरे छे. जिननमस्कार (श्लोक १ थी १७), वागडदेशवर्णन (श्लोक १८ थी २४), वांसवाडानगरवर्णन (श्लोक २५ थी ४४ ), उदयपुरनगरवर्णन (श्लोक ४५ थी ६०), सूर्योदय- प्रभातवर्णन (श्लोक ६७ थी ७३), व्याख्यानसभा- श्रावक-श्राविकावर्णन (श्लोक ७४ थी ७७), गुरुवर्णन (श्लोक ८९ थी ११२) कृतिनो टूंक परिचय आटलो कही शकाय. कविए शब्दालङ्कार अने अर्थालङ्कारनो आश्रय लइ उपरनां वर्णनोने खूब रोचक - भाववाही बनाव्यां छे. कल्पना - वैभवनी दृष्टिए पण कृतिना केटलांक पद्यो बहु मजानां छे. जगत्प्रसिद्ध – 'हेमथी रत्न वधु ( मूल्यवान ) छे' ए लोकोक्तिनो प्रयोग करी कर्त्ताए पोताना गुरुने हेमचन्द्राचार्यजीथी पण अधिक दर्शाव्या छे. वस्तुतः गुरु प्रत्येना आदरभावनी द्योतक प्रस्तुत कल्पना पण आपणे माटे तो कल्पनातीत ज छे. असामान्य गुरुसमर्पणभाव होय त्यां आवी कल्पना जन्मे.
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ऐतिहासिक दृष्टिए जोवा जईए तो (१) वागडदेश-वंशपालनपुर (वांसवाडा ) मां राजमान्य व्यक्ति कोठारी कपूरचन्द्रनुं नाम, (२) उदयपुरमां श्रावक सुजाणसिंह, श्राविका साहिमती, तेमना भाट - सेवक दीप- अचलनां नामो, (३) उदयपुरमां चातुर्मास दरम्यान श्रीभगवतीसूत्र - सटीकवाचननी नोंध, (४) उदयपुरमा श्रीशीतलजिन - श्रीसुपार्श्वजिन - श्रीपार्श्वजिन (चैत्य ? )नी नोंध, (५) वागडदेश माटे प्रयोजेल 'वटपद्र' अपर नाम, (६) सहवर्त्ती साधुओनां नाम- आटली विगतो विशेष जाणवा मळे छे.
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