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श्रीविजयप्रभसूरिणा देवकपत्तनात् प्रेषितं
प्रसादपत्रम्
- सं. मुनि सुयशचन्द्र - सुजसचन्द्रविजय
अनुसन्धान- ६४.
गच्छनायकने के पोतानाथी वडील (पर्यायवृद्ध) गुरुभगवन्तने लखेल पत्रना प्रत्युत्तर स्वरूपे ए पूज्यो द्वारा जे प्रतिपत्र लखवामां आवे ते प्रसादपत्र. विज्ञप्तिपत्रोनी माफक आवा पत्रो पण रसाळ शैलीमां लखायेला होय छे. ऐतिहासिक विगतो पण क्यारेक तेमां वणायेल होय छे.
प्रस्तुत पत्र विजयप्रभसूरिजीए देवकपत्तनथी कोना उपर कया नगरे लख्यो छे तेनी नोंध कृतिमां क्यांय नथी. परन्तु अनुसन्धान-६०, विज्ञप्तिपत्र विशेषाङ्क, खण्ड-१मां छपायेल विबुध नयविजयजीए जावालथी देवकपत्तन विजयप्रभसूरिजीने लखेल विज्ञप्तिपत्रनी संवत् अने ते समये विजयप्रभसूरिजीनी निश्रामां रहेल साधुवृन्दनां नामो प्रस्तुत पत्रमां समान छे. तेथी प्रस्तुत पत्र जावाल नगरे विबुध नयविजयजीने लखायो हशे तेम जणाय छे. अथवा, ए ज पुस्तकमां छपायेल पण्डित हीरविमलजीए साहित्यपुर थी लखेल विज्ञप्तिपत्रना प्रत्युत्तर रूपे प्रस्तुत पत्र लखायो होय तेवी शक्यता पण नकारी
न शकाय.
प्रस्तुत पत्रनो महत्तम अंश (खण्ड) जिननमस्कारमां ज रोकायेलो छे. कर्त्ताए १६ पद्योथी श्रीपार्श्वनाथ भगवाननी स्तुति करी पुनः गद्यखण्डमां श्रीदादापार्श्वनाथ भगवानने वन्दना करी छे.
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जिननमस्कार पछी प्रातः व्याख्यानसभा - चातुर्मासिक आराधना - पर्युषणपर्व आराधनानुं वर्णन कर्तुं छे. आ खण्डमा 'श्रीपञ्चमाङ्ग - द्विगुणितपञ्चमाङ्गसूत्रवृत्त्यनुक्रमप्रथमद्वितीयमण्डलीमण्डन' शब्द सूत्रमाण्डलीमां पञ्चमाङ्ग श्रीभगवती सूत्र अने अर्थमाण्डलीमां दशमाङ्ग श्रीप्रश्नव्याकरणसूत्रवृत्तिना स्वाध्याय अर्थे प्रयोजायो छे. ते ज रीते 'पापिष्ठप्राण्याचीर्णनिकृष्टकर्मवारणपटुपटहोद्घोषण' जेवा मजाना शब्दप्रयोगो अभयदान - जिनपूजा (महापूजा) - चैत्यपरिपाटी अर्थे प्रयोजाया छे.
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