________________
८४
अनुसन्धान-६३
दसे दृष्टांते मनुष्य भव दोहिलो,
पांमी कीजइं भगवंत सेवो ॥३॥ तारि रे० ॥ तुझ विण काल अनंत मइ अनुभव्यो,
अकल अनादि अरिहंत जांणो । भवसागर भवभ्रमण भय वारीइं ।
भलो मल्यो मुझ एह ठाणो ॥४॥ तारि रे० ॥ संवत सत्तर चऊदोत्तर (१७१४) वरसिं,
श्रीविजयदसमी तिथि रुडी जांणी । श्रीविजयराजसूरिसरराजि, मई गाईओ प्रभु उलट आंणी ॥५॥ तारि रे० ॥
। कलस ॥ श्रीश्रेयांस जिनवर प्रणतसुरनर,
प्रभु वंछितदायक सुरतरुं । मई तव्यो हरखि भाव आंणी,
श्रीखंभनयरमां जिनवरं ॥१॥ तपगच्छनायक सुखदायक,
श्रीविजयाणंद सूरीसरो । तस सीस अमरविजय जंपई,
सदा संघमंगल करउ ।।२।।
इति श्रीश्रेयांसजिनस्तवनं समाप्तम् ॥श्री।
ढाल
· कडी
कठिन शब्दोना अर्थ शब्द . अर्थ रतनरेऊ रत्ननो राशि हइंयj
हैयामां सपनवी स्वप्नविद् उज्झउनालिं उज्झ उनालिं(?)
.. ११
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org