SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० जिम वाइं सितपखि द्वितीया केरो चंदलो रे, तिम वाधइं जिननुं अंग । त्रणि ज्ञानी अरिहंत आस्या पूरण पूरसई रे, देखी ऊपजई रंग ॥४॥ ० ॥ प्रभु मस्तक दीसइं टोपीउ हीरे जड़ी रे, पहरी आंगी अमूल । कटि कमरबंध कनकमय पल्लव दीपता रे, पहिर्यां आभरण बहुमूल ॥५॥ ० ॥ अनुकरमिं वाध्यो सार योवन प्रभु पांमीओ रे, कमला लाव्यो सार । राजमणी भोगवतां लोकांतिक इम कहिं रे, प्रभु लिओ संयमभार ||६|| ० || त्रणिसई कोडि अठ्यासी अयसी लाख वली रे, वरसीदान दातार । फागुण वदि तेरसि दिन दिख्या आदरी रे, सहस पुरुषस्युं सार ॥७॥ ० ॥ || ढाल ॥ दिख्या छठ तप पारणुं रे लाल, नंदराय घरि थाय मेरे प्यारे रे । पंचदिव्य देविं तिहां रे लाल, सोवनवृष्टि सोहामणी रे लाल, Jain Education International कर्यां ते कहवाय मेरे प्यारे रे ॥१॥ तुं जिन साचो साहिबो रे लाल || आंचली ॥ अनुसन्धान-६३ कोडि सांढि बार मेरे प्यारे रे । विविध वस्त्र बीजइं भलां रे लाल, देव करई अंबार मेरे प्यारे रे ॥२॥ तुं जिन० ॥ त्रीजइ देवदुंदुभि रे लाल, सरगी सखरी वाय मेरे प्यारे रे । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy