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जिम वाइं सितपखि द्वितीया केरो चंदलो रे, तिम वाधइं जिननुं अंग ।
त्रणि ज्ञानी अरिहंत आस्या पूरण पूरसई रे, देखी ऊपजई रंग ॥४॥ ० ॥ प्रभु मस्तक दीसइं टोपीउ हीरे जड़ी रे, पहरी आंगी अमूल ।
कटि कमरबंध कनकमय पल्लव दीपता रे, पहिर्यां आभरण बहुमूल ॥५॥ ० ॥ अनुकरमिं वाध्यो सार योवन प्रभु पांमीओ रे, कमला लाव्यो सार । राजमणी भोगवतां लोकांतिक इम कहिं रे,
प्रभु लिओ संयमभार ||६|| ० || त्रणिसई कोडि अठ्यासी अयसी लाख वली रे, वरसीदान दातार । फागुण वदि तेरसि दिन दिख्या आदरी रे, सहस पुरुषस्युं सार ॥७॥ ० ॥
|| ढाल ॥
दिख्या छठ तप पारणुं रे लाल,
नंदराय घरि थाय मेरे प्यारे रे । पंचदिव्य देविं तिहां रे लाल,
सोवनवृष्टि सोहामणी रे लाल,
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कर्यां ते कहवाय मेरे प्यारे रे ॥१॥ तुं जिन साचो साहिबो रे लाल || आंचली ॥
अनुसन्धान-६३
कोडि सांढि बार मेरे प्यारे रे ।
विविध वस्त्र बीजइं भलां रे लाल,
देव करई अंबार मेरे प्यारे रे ॥२॥ तुं जिन० ॥ त्रीजइ देवदुंदुभि रे लाल,
सरगी सखरी वाय मेरे प्यारे रे ।
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