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________________ ६४ अनुसन्धान-६३ 'नालिकेरसमाकारा:' इति वाक्यस्य चत्वारिंशदर्थाः ___ सं. मुनि सुयशचन्द्र-सुजसचन्द्र विजय संस्कृत-प्राकृत भाषाना बंधारणमां ओवी विशिष्टता छे के जेने लीधे ओ भाषामां लखायेला ओक ज वाक्यना के श्लोकना अनेक अर्थो करी शकाय छे. परन्तु माटे शब्दशास्त्रमा पारङ्गतता, विपुल शब्दभण्डोळ, कोशज्ञान, ते प्रकारनो अभ्यास, कल्पनाशक्ति, तर्कशक्ति, लोकव्यवहारनी जाणकारी, कविसमयोनुं ज्ञान - आ बधुं आवश्यक होय छे. अने अथी ज आवा प्रकारनी कृति विद्वानोने आदरजनक ने सामान्य लोकोमा चमत्कारजनक बने छे. प्रस्तुति कृतिमां 'नालिकेरसमाकाराः' ओ वाक्यना चालीस अर्थो करवामां आव्या छे. आम तो आ वाक्यनो 'नाळियेर जेवा स्वरूपवाळा' ओवो सादो अर्थ छे. पण कर्ताओ समासविग्रह अने ओकाक्षरीकोशनी करामतने कामे लगाडी आना अर्थोनी सङ्ख्याने ४० सुधी पहोंचाडी छे, जे आपणने आश्चर्य पमाडे छे. कृति, सम्पादन साहित्यमन्दिर-पालिताणानी अेक पानानी प्रतने आधारे करवामां आव्युं छे. प्रतमां अक्षरो घणा ज झांखा अने त्रुटक छे. छतां पण घणा ज परिश्रमे यथामति उकेलवानो प्रयास कर्यो छे. घणी जग्याओ त्रुटि रही ज छे, पण विद्वानो अनुं संमार्जन करशे तेवी आशाथी ज सम्पादन करवानो प्रयत्न कर्यो छे. प्रत आपवा माटे साहित्यमन्दिरना व्यवस्थापकोना अमे आभारी छीओ. प्रतमां के कृतिमां कर्तानो उल्लेख नथी. प्रतना अक्षरोना मरोड जोतां उपाध्याय श्रीयशोविजयजी भगवन्तना हस्ताक्षर होय ओवी छाप पडे छे. पण प्रतमा रहेली ढगलाबंध अशुद्धिओ अने उपाध्यायजी पासे अपेक्षा होय तेवी प्रौढतानो अभाव उपरोक्त आशङ्कानी विरुद्धमा जता मुद्दाओ छे. विद्वानो निर्णय करी शके ते माटे प्रतनो थोडो अंश Scan करीने मूक्यो छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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