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अनुसन्धान-६३
तदाधारित अनन्त द्रव्यपुद्गलपरावर्तो थया होवा सिद्ध ज छे.१ ते टिप्पनककार द्वारा अनी सामे उठाववामां आवेली आशङ्का ओटले गेरवाजबी ठरे छे के अने शास्त्रबल तो नथी ज, पण तार्किक रीते पण अमां वजूद नथी.
पूर्वे जणाव्युं तेम, 'अतीतकाल = सिद्ध x असङ्ख्य समय' आ समीकरणमां तकलीफ ओ छे के सिद्धजीवोनी राशि अनादि छे. तेनी इयत्ता नक्की करी शकाय नहीं. अने दाखलो गणवा माटे सिद्धजीवोनी कोई चोक्कस सङ्ख्या मूकवी ज पडे. केम के असङ्ख्य समयो साथे केटला सिद्धोने गुणवा अ ज नक्की नहीं होय तो अतीतकाल पण नक्की नहीं थाय. अने जो सिद्धोनी सङ्ख्या नक्की करीने अतीतकालनुं निर्धारण करीशुं तो अटला अतीतकाल पहेला संसार न हतो अम समजवामां संसारना सादित्वनी आपत्ति वज्रलेप समान छे. माटे अतीतकालनं अनिर्धारण ज संसारनं अनादित्व स्वीकारनारा जैनोने इष्ट होई शके. अने से वात वाजबी पण छे; केम के सिद्ध-जीवराशिने अन्तरहित गणीने जो आपणे तेना आधारे अनागतकाल नक्की न करी शकता होई, तो अनी आदि पण न होवाथी अना आधारे अतीतकालनु निर्धारण पण केम कराय ? वास्तवमां अतीतकालनु अयुक्त निर्धारण ज आवी विसङ्गत प्ररूपणाचें मूळ जणाय छे. अतीतकाल आटलो अल्प न ज होय ते वात शास्त्र अने युक्ति - उभयसिद्ध छे.
खरेखर तो युक्तिवादनी ओक मर्यादा छे. ओ मर्यादाने ओळंगीने श्रद्धावादना विषयोमां पण युक्तिओ लगाडवी, ओ पण श्रद्धेय विषयना मण्डन माटे नहि, खण्डन माटे, ते अयोग्य ज गणाय. आ बाबतमां अनुयोगद्वारसूत्र ३६६ना विवरणमां मलधारीजी भगवन्ते उच्चारेलां वचनो हृदयपट्ट पर कोतरी राखवा जेवां छे : "न चाऽतीन्द्रियेष्वर्थेषु एकान्तेन युक्तिनिष्ठ व्यं, सर्वज्ञवचनप्रामाण्यात् ।" (अतीन्द्रिय अर्थोमां अकान्ते तर्कबुद्धि लगाडवी वाजबी नथी, कारण के ओ पदार्थोने 'सर्वज्ञनुं वचन अप्रमाण होय ज नहि' ओवी दृढ श्रद्धाथी यथावत् स्वीकारी लेवाना होय छे.).
अत्रे करेली विचारणामां रहेली क्षतिओ सूचववा तथा आ चर्चाने आगळ १. आ वातना निःशङ्क पुरावा माटे जुओ भगवतीजी - शतक १२ उद्देश ४ सूत्र ४४५
४४६मां प्रभुवीरे स्वमुखे करेली प्ररूपणा अने तेनी अभयदेवसूरि विरचित टीका.
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