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________________ जान्युआरी - २०१४ १८९ आव्यो न होय.) 'प्रज्ञापनाजी' - पद १२ - सूत्र १७७नी मलयगिरीय टीका जुओ - "सर्वेऽपि पुद्गलाः सर्वैरपि जीवैः प्रत्येकमौदारिकत्वेन गृहीत्वा मुक्ताः।" (सकलजीवराशिना प्रत्येक जीव द्वारा औदारिकपणे सर्व पुद्गलो ग्रहण करीने मूकायेला छे.) अ ज टीकामां उपरनी वातने पुष्ट करतो चूर्णिनो पाठ नोंधायेलो छे : "न वि अविगलाणमेव केवलाणं पि गहणं एयं न य ओरालियगहणमुक्काणं सव्वपुग्गलाणं ।" आवा पाठो तो अनेक मळी शके. सवाल अना स्वीकार-अस्वीकारनो छे. ते टिप्पनककारे सकल पुद्गलोना अग्रहण माटे जे तर्क आप्यो छे, ते वाजबी तो नथी ज. छतां पण ओक क्षण पूरतो तेने वाजबी मानी लईओ, तो पण प्रश्न तो रहे ज के, जे तर्क आपणने तमाम शास्त्रीय परूपणाओ तेमज बहुश्रुत भगवन्तोनां वचनोने अमान्य ठराववा प्रेरे छे, तथा जे तर्कने कोई शास्त्रवचन- पीठबल नथी, ओ तर्कने पकडी राखवानो कोई अर्थ खरो ? उपर 'प्रज्ञापना'नी टीकानो जे पाठ उद्धृत कर्यो छे ते पाठथी थोडीक लीटीओ पहेलां ज अन्य सन्दर्भे मलयगिरि भगवन्ते. उच्चारेलां वचनो जुओ - “एकैकस्मिन्नप्याकाशप्रदेशे एकैकौदारिकशरीरस्थापनया असङ्ख्येया लोका व्याप्यन्ते, परं पूर्वाचार्या आत्मीयावगाहनस्थापनया प्ररूपणां कुर्वन्ति, ततोऽपसिद्धान्तदोषो मा प्रापदित्यस्माभिरपि तथैव प्ररूपणा क्रियते ।" जे वाततर्क सर्वथा युक्तिसङ्गत छे, छतां तेनी प्ररूपणामां जो अपसिद्धान्त (स्वीकारेला सिद्धान्तने खोटो ठरावे तेवी प्ररूपणारूप) दोष जोवामां आवे, तो असङ्गत अथवा मनघडन्त तर्कने आधारे थता शास्त्रविरुद्ध प्रतिपादनने अंगे तो शुं कहेवू ? ४. ते टिप्पनककार द्रव्यपुद्गलपरावर्तनी परिभाषा के विवक्षा बदलवानी वात करे छे. पण गमे ते परिभाषा के विवक्षा कल्पो, जो अमां सकल पुद्गलो, परावर्तन थवानी वात नहीं होय, तो अने 'द्रव्यपुद्गलपरावर्त' कहेवाशे शी रीते ? अने जो सकल पुद्गलो, परावर्तन स्वीकारQ होय, तो आ शास्त्रोमां डगले-पगले मळती विवक्षाओ | खोटी छे ? __वास्तवमां, "तेऽणंताऽतीअद्धा" (नवतत्त्व-गाथा-५४) जेवां शास्त्रवचनोने आधारे अक ओक जीव द्वारा अनन्तीवार सकल पुद्गलास्तिकायनुं ग्रहण अने Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
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