SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 191
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जान्युआरी - २०१४ १८५ प्रकार (-औदारिक व.) सिवायना प्रकारे थतुं ग्रहण गणतरीमां नथी लेवातुं, तेथी स्थूल करतां तेमां घणो वधारे समय पसार थाय छे. ३. उपरनी ज वृत्तिमां अन्य मत देखाडवामां आव्यो छे - उपरोक्त सातमांथी औदारिक, वैक्रिय, तैजस अने कार्मण - ओ ४ रूपे सघळां पुद्गलोनुं ओक जीव द्वारा ग्रहण-मोचन थवामां पसार थतो समय ते स्थूल द्रव्यपुद्गलपरावर्त तथा ओ चारमांथी कोई पण ओक ज शरीर रूपे परिणमननो काल ते सूक्ष्म द्रव्यपुद्गलपरावर्त. उपर दर्शावेली विवक्षाओ भले परस्पर विभिन्न होय, परन्तु चौद राजलोकमां रहेलां तमाम पुद्गलो परिणमन थाय ओ वात तो बधामां समान रूपे छे. अने अहीं ज नहीं, शास्त्रोमां ज्यां ज्यां पण द्रव्यपुद्गलपरावर्तनी वात छे, त्यां बधे ज तमाम पुद्गलोना ग्रहण-मोचननी प्ररूपणा छे. अमां कशी नवाई पण नथी, केमके जैन दार्शनिक परम्परा पहेलेथी ज ओ वात स्वीकारती आवी छे. परन्तु हमणां हमणां केटलाक महानुभावो आ तमाम शास्त्रोनी प्ररूपणाओने अमान्य ठरावी रह्या छे. "पुद्गलास्तिकायगत तमाम पुद्गलो, ग्रहण-मोचन ओक जीव द्वारा तो नहीं ज, पण सर्व जीवो द्वारा पण आज सुधी नथी थयुं, अने भविष्यमां पण नथी थवानु; अनन्तानन्त पुद्गलो कायम माटे अगृहीत ज रहेवाना छे. अने तेथी सर्व पुद्गलोनी परावृत्तिरूप द्रव्यपुद्गलपरावर्त सर्व जीवो द्वारा पण थयो नथी के थवानो नथी'', अq तेमनुं कहेवू छे. "अनुयोगद्वार-टिप्पनक" (प्र. दिव्यदर्शन ट्रस्ट, धोलका, वि.सं. २०६३) नामना ग्रन्थमां आ अंगे करवामां आवेली टिप्पणी (पृ. २६०) नीचे मुजब छे “ननु सर्वपुद्गलास्तिकायगतसर्वपुद्गलानां सर्वजीवेभ्योऽनन्तानन्तगुणत्वं वृत्तावप्यग्रे कथयिष्यते । ततश्च कथमेकस्याऽप्येवंविधस्य पुद्गलपरावर्तस्य सम्पूर्णेऽप्यतीतकाले सम्भवः ? अयम्भावः - पृच्छासमयं यावदेकेन जीवेन गृहीताः पुद्गलाः कियन्त इति प्रापणार्थं 'प्रतिसमयं गृह्यमाणपुद्गलराशिप्रमाणेन गुण्यमानेऽतीतकालगतसमयराशौ यत्प्राप्यते तत्प्रमाणाः' इति करणमुपयुज्यते । अत्र च प्रतिसमयं गृह्यमाणपुद्गलराशिरभव्यजीवद्रव्यसङ्ख्यातोऽनन्तगुणप्रमाण: Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520564
Book TitleAnusandhan 2014 03 SrNo 63
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2014
Total Pages198
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy