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अनुसन्धान-६३
कि इस चित्रकला को, अन्य चित्रशैलियों की तरह, किसी स्थल या प्रदेशविशेष का मर्यादाबन्धन रहा नहीं। एक ही शैली के कल्पसूत्रीय चित्रों आगरा में, पाटन में, खम्भात में, जौनपुर में, माण्डू में, एवं अन्यान्य स्थलों में बनाये गये समानरूप से मिलते हैं, उसका भी यही कारण है। यद्यपि अलग अलग प्रदेश या गांव में। शहर में चित्रांकित चित्रों में स्थानीय/प्रादेशिक शैलीगत, कलमगत एवं रंगमिलावट इत्यादि की छोटीछोटी कुछ विभिन्नता/तरतमता दिखाई देती है, परन्तु वह विभिन्नता रहते हुए भी उन चित्रों की जो मौलिक लाक्षणिकताएं हैं - जैसे कि डेढ चश्म आंखें, नुकीली नासिका, अत्यधिक पतला कटिप्रदेश एवं रेखाओं का प्राधान्य - वह सब तो सर्वत्र एक-समानरूप से ही मिलती हैं। और ऐसा होने का कारण यही है कि यह चित्रकला जैन धर्माचार्यों के निजी मार्गदर्शन तले विकसी है व प्रसरी है, और किसी विशिष्ट स्थल के अवलम्बन पर या राज्य अगर लोक के आश्रय में नहीं। यहां तक कि चित्रकारों को अपनी भौलिक/निजी शैली को छोडकर या दबाकर भी आचार्यों द्वारा सूचित/दर्शित प्रस्तुत शैली को अपनानी पडी है, और कल्पसूत्रों व अन्य चित्रमण्डित ग्रन्थों में उन्होंने बडी कुशलता के साथ उसका सर्जन/प्रदर्शन किया है।
प्रश्न यह है कि कतिपय ग्रन्थ ऐसे भी है, जो जैनेतर धर्मसम्प्रदायों से सम्बद्ध है, और उन ग्रन्थों में भी इसी शैली के चित्र पाये गये हैं, उनका क्या करना? शायद इसी जैनेतर ग्रन्थों के चित्रों को लेकर आधुनिक विद्वानों ने इस शैली को 'जैन शैली' न कहकर, अपभ्रंश, मारुगुर्जर या पश्चिम भारतीय शैली का नाम दे दिया है। उनकी राय में मध्यकालीन ग्रन्थचित्रशैली अगर जैन शैली होती, तो जैनेतर ग्रन्थों में इसी शैली के चित्र नहीं होते।
किन्तु, 'हमारी दृष्टि में, यह धारणा ठीक नहीं है। सही बात यह है कि जैसे जैनेतर अनेक/बहुसंख्य धर्मग्रन्थों जैन नागरी लिपि में लिखे गये मिलते हैं, और वह ग्रन्थ जैन नागरीलिपि के लेखकों द्वारा लिखे-लिखवाये गये माने जाते है, उसी तरह कतिपय जैनेतर ग्रन्थ - वसन्तविलास, हंसावली, चण्डीशतक इत्यादि के चित्र भी जैन शैली के चित्रकारों के द्वारा चित्रित किये गये हैं, ऐसा मानना वास्तव से बहुत निकट व समुचित लगता है। हां, यदि जैनेतर ग्रन्थों - जो जैन शैली के चित्रों से मण्डित हैं - की संख्या बहुत बडी मिलती, तो तो उन चित्रों की शैली को कोई दूसरा नाम देना उचित होता। किन्तु अभीतक ऐसे ग्रन्थ सिर्फ
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