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अनुसन्धान-६३
सूद्ध पालवा. तेमां प्रथम समकितनी विगत मांडी छे.
धर्म अर्थे देव श्रीअरिहंत, ते स्वामी केहवा छे ?
चोत्रीस अतीसय करीने बीराज्यमांन, पांत्रीस प्रकारनी सत्य वचन वाणीनां बोलणहार, एक हजार अष्ट उत्तम लक्षणना धरणहार, चउसठ अइना (इंद्रना) पूजनीक, त्रिन लोकनां नाथ, सकल लोकना स्वामी, म हणो म हणो शब्दना करणहार, अनंतो ज्ञान, अनंतो दर्शन, अनंतो बल, अनंतो वीर्य, अनंतो पुरुषाकार प्राक्रमना धरणहार - एवं अनेक गुणे करी अलंकृत एहवा अरिहंत देव धर्म अर्थे करीने सत्य जाणवा. बाकी संसारनां देव धर्म अर्थे मानवाना पंचखांण. संसारने अर्थे मानवा पडे तो आगारे छे.
धर्म अर्थे गुरु ते निग्रंथ, पंच महाव्रतधारी, कंचन कामिनी नीवारी, उग्र विहारी, रात्रिभोजन नीवारी, आचारी, विचारी, भ्रमचारी, निर्मल, निरअहंकारी सचित्त नाम त्यागी, अचेतना भोगी, छकायनी रिख्याना करणहार, बारे भेदे तपस्याना करणहार, सत्तरभेदे संजमना पालणहार, बावीस परिसहना जीतणहार, सत्यावीस साधून गुणे करी सहीत, बेतालीस तथा सडतालीस तथा छनु दोष टाली आहार पांणीना लेवणहार, संसारथी उपरांठा, मोक्षने साहमा, कंचन कामनीथी न्यारा, तेड्या जाय नही, नो नोत्र्या जीमे नही, पंच आचारना पालक, एवं अनेक शुभगुणालंकृत पूज्यजी शाहेबजी माहापुरुष ऋषी श्री७ देवजी ऋख स्वामी महरा धर्मगुरू धर्म आचार्य छै. तथा एना संघाडाना साध साधवी एहनी आज्ञा प्रमाणे विचरे छे तें, जिनाज्ञा प्रमाणे साधवी वीचरे छे ते पीण माहरा धर्मगुरु 2. मोक्षने अर्थे एहवा गुरू सत्य करी जाणवा, बाकी संसारीक गुरू संसारने अर्थे मानवा पडे तो आगार छे.
धर्म अर्थे धर्मने श्रीकेवली ज्ञानीनो भाख्यो दयामूल विनयमूल ज्ञान दर्शन : चारित्र तप दांन सीयल तप भाव च्यार तिर्थनी सेवा भक्ती विनो वाछलका करवी, संवर करणी, पून्यकरणी इत्यादिक जिनाज्ञा प्रमाणे जे कर्तव्य करवा ते सर्वे धर्म जाणवो. एहवो धर्म आदरवो, आदराववो, आदरता प्रते रुडू जांणवो. एहवा त्रिन तत्त्व साचा करी जांणवा. एह मोक्षमार्गनो साधन छे. बाकी कुदेव-कुगुरु-कुधर्म मोक्षने अर्थे मानवानां पचखांण. संसारने अर्थे मानवा पडे तो आगार छे. तथा छ छीडींनो आगार छे.
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