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जान्युआरी - २०१४
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श्रीगुलाबविजयकृत
सुमतिजिनआरती अपछरा करती आरती जिन आगें - ओ देशी ॥ सुमति जिणंदने आगलें भवि कीजें.
हारे भवि कीजे रे भवि कीजे; हारे आरती बहु दीप धरीजे,
हां रे मेघराय कुमार ..... सुमति जिणंदने. सवली आरती सुरज जिम फिरतो,
हारे जिन मेरु प्रदक्षणा करतो; हारे भविलोक तिमिरनें हरतो,
हां रे कवी ओ उपमा अनुसरतो..... सुमति जिणंदने. मंगला कुंख सरोवर हंस जांण,
हारे प्रभु कोसला जनमर्नु ठाण; हां रे त्रणसे धनु कायाप्रमाण,
हारे प्रभु य तुं कंचन वान..... सुमति जिणंदने. नुतन देहरो कारियो जिन तेरो, .
हारे मांणक हरियो मन मेरो; हारे पंन्यास मणिगुरु थेरो हारे गुलाबें पुजोजी सवेरो.... सुमति जिणंदने.
इति आरती सम्पूर्ण संवत् १९४१ना भाद्रवा सुद ५ भोमवारें ॥
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