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पं. शीलशेखरगणिकृता श्रीदेवसुन्दर सूरि विज्ञप्ति:
सं. विजयशीलचन्द्रसूरि
श्रीदेवसुन्दरसूरि ए तपागच्छना प्रभावक गच्छनायकोमांना एक अग्रणी आचार्य छे. १४मा शतकना आ आचार्य तथा तेमनो विशाल शिष्यसमुदाय संस्कृत- प्राकृत भाषानी अवनवी, चमत्कृतिपूर्ण, ललित रचनाओ तथा सैद्धान्तिक साहित्यसर्जन माटे प्रसिद्ध छे. आ आचार्य तथा तेमना पट्टधर आचार्योना काळमां साहित्यनुं विपुल मात्रामां सर्जन थयुं छे, तो ए समयमां लखायेली हस्तप्रतो पण एक आगवी कलात्मक भात धरावती जोवा मळे छे.
तेमना ज शिष्यगणमांना एक पं. शीलशेखरगणिनी, गुरुस्तवनात्मक, बे प्राकृत पद्यरचनाओ अत्रे प्रस्तुत छे. प्रथम रचनामां १० पद्यो छे, तेमां जोके गुरुनुं नाम क्यांय नथी; तो पण सन्दर्भ जोतां ते देवसुन्दरसूरिनी स्तवना ज होवानुं मानी शकाय तेम छे. प्रत्येक पद्यमां, स्तुतिकारमां हृदयनो, गुरु प्रत्येनो, असाधारण अहोभाव नीतरे छे, जे कोईपण गुरु-उपासकने भावविभोर बनावी मूके तेम छे. पद्य ६-७ - ८ तो उत्तराध्ययनसूत्रगत नमिप्रव्रज्या - अध्ययननी गाथाओ छे. कर्ताए बहु ज सार्थक रीते ते पद्योनो अहीं विनियोग कर्यो छे, जे आनन्ददायक छे.
बीजी रचना, जे खरेखर 'देवसुन्दरसूरिविज्ञप्ति' रूप छे, ते १५ कडीनी चौपाई प्रकारनी गेय रचना छे. आमां गुरुना गुणोनुं आलङ्कारिक छतां प्रासादिक वर्णन छे. प्रथम कडीमां गुरुनां माता - पिता ( सोहिणिदेवी अने पाल्हणसीह) नो नामोल्लेख एक महत्त्वनी ऐतिहासिक विगत आपी जाय छे.
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१५मी कडी हरिगीतछन्दना लयमां छे, जे जोतां हरिगीत ४ नहि, पण २ पंक्तिमां पण रची शकाय, तेवुं समजाय छे. प्रान्ते कृतिनुं अने कर्तानुं नाम छे. आ रचनानी एक पत्रात्मक प्रति राधनपुरना विजयगच्छना ज्ञानभण्डारमां सचवायेली छे. लखावट अनुमानत: १५ मा सैकानी छे. आनी झेरोक्स नकल उपाध्याय श्रीभुवनचंन्द्रजी द्वारा मळेल छे, तेने आधारे आ वाचना तैयार करेल छे.
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