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ओगस्ट - २०१३
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केटलाकना मते परिहारविशुद्धि-चारित्रधारकने उपशमश्रेणी के क्षपकश्रेणी पर आरोहण नथी होतुं. ज्ञानपुलाक अने लब्धिपुलाकनां लक्षणो जुदां जुदां छे. पण केटलाकना मते ज्ञानपुलाक ज लब्धिना प्रयोगे लब्धिपुलाक गणाय छे. मिथ्यादृष्टि विभङ्गज्ञानीने अवधिदर्शन होय के नही ते अंगे मतभेद
कृष्णादि ३ लेश्या ५-६ गुणठाणे होय के नहीं ते अंगे मतभेद मूळ गाथामां सूचवायो छे. वैमानिक देव सिवाय अन्य गतिमां पाछला भवनुं क्षायोपशमिक सम्यक्त्व न मळे अम कार्मग्रन्थिक मत छे, ज्यारे सैद्धान्तिक मते ओवो अकान्त नथी. विग्रहगतिमां प्रथम समये जीव प्रज्ञप्तिना मते अनाहारक होय छे ज्यारे तत्त्वार्थटीकाना मते आहारक होय छे. कोइकना मते गति पांच समयनी पण होई शके छे, ज्यारे प्रचलित मान्यता अनुसार गति वधुमां वधु चार समयनी ज होय छे. काल- ओक माप 'प्राणु' कहेवाय के 'प्राण' कहेवाय ओम बे मत
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उत्कृष्ट असङ्ख्यात असङ्ख्यातुं कई रीले थाय ते विशे बे मत छे. उत्कृष्ट अनन्तानन्त थाय के नहीं ते अंगे जीवसमासचूणि अने अनुयोगद्वारसूत्रनो अभिप्राय विभिन्न छे. 'प्रत्यक्ष' शब्दनी व्युत्पत्ति तत्पुरुषसमासथी करवी के अव्ययीभावसमासथी तेमां मतभेद छे. चक्रवर्तीना सैन्यनी नीचे क्यारेक उत्पन्न थाय छे ते आशालिक जीव बेइन्द्रिय होय के सम्मूच्छिम पंचेन्द्रिय होय अवा बे मत छे. अनुयोगद्वारसूत्रना अभिप्राये रुचकवरद्वीप जम्बूद्वीपनी अपेक्षाओ ११मो द्वीप छे, ज्यारे से ज सूत्रनी चूर्णिना उल्लेख प्रमाणे १३मो छे. भवनपति, व्यन्तर अने ज्योतिष निकायमां सम्यक्त्व सहित उत्पन्न न थाय अवो कार्मग्रन्थिक मत छे, पण सैद्धान्तिक मते तेवो अकान्त नथी.
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