SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४ अनुसन्धान-६२ सं. २०६८ ना भावनगरना चातुर्मास दरमियान पूज्यपाद गुरुभगवन्त पासे आ ग्रन्थना अध्ययननो सुयोग सांपड्यो. ग्रन्थ अने तेनी मलधारीय टीकामां केवी सरस वातो रजू थई छे ते अध्ययनथी ज खबर पडे तेम छे, तो पण नमूना खातर थोडी वातो जोईओ - *३. जे पर्याय द्रव्यमां वर्तमानकाले अविद्यमान होय, परन्तु भूतकाले के भविष्यकाले जो ते पर्याय द्रव्यमां अस्तित्व धरावतो होय तो, ते पर्यायनी अपेक्षाओ ते द्रव्य अत्यारे 'द्रव्यनिक्षेप' गणाय छे. जेमके, माटी भूतकालीन के भविष्यकालीन घडानी अपेक्षाओ 'द्रव्यघट' कहेवाय छे. प्रश्न ओ थाय के अजीव जीव बने के जीव अजीव बने तेम बनतुं न होवाथी 'द्रव्यजीव' कोने गणवो ? पूर्वाचार्योओ आ समस्यानां अनेक समाधानो सूचव्यां छे ज. पण प्रस्तुत स्थळे सूचवायेलुं समाधान तद्दन विलक्षण छेजीव मूळभूत रीते अरूपी होवा छतां औदारिकादि शरीरो साथे अन्योन्यानुगत होवाथी कथंचिद् रूपी पण जणाय छे. तेना आ द्रव्य साथेना सम्बन्धने प्रधानता अपीओ तो द्रव्यभूत जणातो ते जीव 'द्रव्यजीव' छे अने मूळभूत स्वरूपनी अपेक्षाओ ते ज 'भावजीव' छे. १६. ज्यां इन्द्र, सामानिक, आभियोगिक अवा देवोना भेदो होय ते कल्पोपपन्न देवलोक, अने ज्यां बधा ज देवो सरखी कक्षाना गणाय ते कल्पातीत देवलोक. आ प्रचलित व्याख्याने बदले अत्रे जुदी ज व्याख्या आपी छ : - जे देवलोकमां नवा उत्पन्न थयेला देवोने मज्जन, स्नान, अलङ्करण, व्यवसायसभागमन, पुस्तकवांचन व. कल्प-कर्तव्य- आचरण करवानुं होय ते कल्पोपपन्न. अने जे देवलोकमां आq कोई नियत कल्पाचरण नथी ते कल्पातीत. अलबत्त, बन्ने व्याख्या प्रमाणे व्यवस्था तो सरखी ज रहे छे. २५. कया जीवने केटली पर्याप्ति संभवे ते दर्शावता ग्रन्थकारे "चत्तारि पंच छप्पिय एगिदियविगलसन्नीणं" जणाव्युं छे. मतलब के अकेन्द्रियने चार, * अत्रे दर्शावेली सङ्ख्या प्रकरणनी कई गाथानी टीकामां प्रस्तुत वात छे ते सूचवे छे. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy