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ओगस्ट - २०१३
स्वाध्याय
जीवसमास-प्रकरण
- मुनि त्रैलोक्यमण्डनविजय
जीवसमास ओ प्राचीन आगमिक प्रकरण छे. श्रीअभयदेवसूरिकृत भगवतीटीका, श्रीविजयसेनसूरिकृत सेनप्रश्न, श्रीविनयविजयोपाध्यायकृत लोकप्रकाश व. अनेक ग्रन्थोमां थयेलो जीवसमासकारना मतनो सादर निर्देश आ ग्रन्थ- माहात्म्य समजवा माटे पूरतो छे. आ प्रकरण दृष्टिवादमांथी उद्धृत छे; वालभी वाचना वखते श्रीदेवर्द्धिगणिनी अध्यक्षतामां आ प्रकरण पुस्तकारूढ थयुं छे; आवी अनुश्रुतिओ आ प्रकरणनी महत्तानी ज साख पूरे छे. चौद गुणस्थानकमां सत्पदप्ररूपणादि आठ अनुयोगद्वार वडे विचार ते आ ग्रन्थनो मुख्य विषय छे.
आ प्रेकरण पर चारेक टीका रचाई छे : (१) मूलवृत्ति (-आनो निर्देश गाथा-४७ मलधारीय टीकामां छे.) (२) चूणि (-आनो निर्देश गाथा१३९ मलधारीय टीकामां छे.) (३) शीलाचार्यरचित अर्वाचीन टीका (-आ टीका अद्यावधि अप्रगट छे. अनो निर्देश मलधारीय टीका-गाथा ७३, ८०, २१६, २१८, २३६ व. अनेक स्थळे छे.) (४) प्रसिद्ध मलधारी श्रीहेमचन्द्राचार्यरचित टीका; अत्यारे जीवसमास- अध्ययन आ टीकाना आधारे ज थाय छे.
मलधारीय टीका साथे जीवसमास- सौ प्रथम प्रकाशन सं. १९८४मां पूज्य आ. श्री आनन्दसागरसूरिजी म. द्वारा सम्पादित थईने आगमोदयसमितिसूरत तरफथी थयुं हतुं. आ सम्पादनमां खम्भातना श्रीशान्तिनाथ जैन ताडपत्रीय भण्डारमा विद्यमान, सं. ११६५मां अणहिलपुरपाटणमां टीकाकार भगवन्ते स्वहस्ते लखेली प्रतनो उपयोग नहोतो थयो. आ प्रतना आधारे मुद्रित वाचनामां संशोधन आवश्यक हतुं. आ कार्य पूज्य गुरुभगवन्त आ. श्रीविजयशीलचन्द्रसूरिजी द्वारा सं. २०४३मां संपन्न थयु. अने जैन ग्रन्थ प्रकाशन समिति-खम्भात तरफथी अनुं प्रकाशन थयु. अभ्यासीओ माटे आ कार्य बहु उपयोगी सिद्ध थयु. आ टीकानां भाषान्तरो पण एकाधिक प्रगट थयेल छे.
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