SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनुसन्धान-६२ मोहभर-बहुल-जलपूर-संपूरिए, विसय-घणकम्म-वणराज-संराजिए । भवजलहि मज्झ निवडत-जंतूकए, सामि सीमंधरो माय जिम सोहए ॥४॥ तेयभर-भरिय दिइ-विदिसि(सि) गयणंगणे, पि(प)बल-मिछत्त-तिमिर-विद्धंसणो । तविय-जलकमल-वणसंड-बोहंकरो, सामि सीमंधरो दिप्पउ दिणयरो ।।५।। सुजण-मण-नयण-आणंद-संपूरकं, दुरित-हर-भार-तारक-मणी-नायकं । सयल-जग-जंतु-भव-पाप-तापापहं, नमउं सीमंधरं चंदसोभावहं ।।६।। सुरभवणि गयणि पायालि भूमंडले, नयरि पुरि नीरनिहि मेरुपव्वयकुले । देव-देवीगणा नारि-नर-किन्नरा, तुम्ह जस नाह गायंति सादरपरा ॥७॥ नाणगुणि झाणगुणि चरणगुणि सोहिया, सार-उवयार-संभार-संसोहिया । रयण-दिण इरिसवेसि(हरिसवसि?) सुत्त-जागरमणा, नाह तुह नामु झायंति तिहुयणजणा ।।८।। सिद्धिकर रिद्धिकर बुद्धिकर संकर, वियवि(?) अमियभर सामि सीमंधरं । पुव्वभव-विहिय-वरपुन्न-वय-पामियं, राखिहिव भूरि भवभमणु मूं सामियं ।।९।। कम्म-भर-भरिउ संसार अइभग्गउ, थुणउ परिऊण पायहउ लग्गउ । मज्झ हीणस्स णस्स सिर गामिय,(?) करवि करुणायरु संसार करि सामिय ॥१०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy