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________________ ओगस्ट - २०१३ १३ इस रास के कर्ता के सम्बन्ध में परवर्ती कई लेखकों एवं प्रकाशकों ने “विजयभद्र या उदयवन्त' लिखकर भ्रामकता पैदा की है । रास की गाथा ४३ में स्पष्टतः “विणयपहु उवझाय थुणिज्जई" विनयप्रभोपाध्याय का उल्लेख है। दूसरी बात, रचना सं. १४१२ के १८ वर्ष बाद की अर्थात् १४३० की लिखित स्वाध्याय पुस्तिका में यह रास और विनयप्रभरचित कई स्तोत्र भी प्राप्त हैं । यह प्रति बीकानेर के बृहद् ज्ञानभण्डार में सुरक्षित है। ३. महावीरस्तव- (सानन्दनम्रसुरकोटिकिरीटपीठ) श्लोक २४ भाषा-संस्कृत ४. विमलाचल ऋषभजिनस्तव-(विमलशैलशिरोमुकुटायतं) श्लोक २७, भाषा संस्कृत ५. शान्तिजिनस्तव-(सज्ज्ञानभानुहतमोहतमोवितानक) श्लोक १९, भाषा-संस्कृत ६. तमालताली पार्श्वस्तव-पद्य ९, भाषा-संस्कृत ७. वीतरागविज्ञप्ति-(मुखं संकुखं नयणले) पद्य १३, भाषा प्राचीन मरु गुर्जर ८. तीर्थयात्रा स्तव-(महानन्द-महानन्द). प. ४१, भाषा-संस्कृत ९. वीतरागस्तव-(देविंद नागिंद नरिंद चंद) गाथा २५, भाषा-अपभ्रंश १०. चतुर्विंशति जिन स्तव-(मोह महाभड़ भय महण रिसह) गाथा २९, भाषा अपभ्रंश ११. सीमन्धरस्तव-(नमिर सुर असुर नरविंद वंदिय पयं)गाथा १४, भाषा अपभ्रंश १२. तीर्थमाला स्तवन-(पणमिय जिणवरचलणे) गाथा २५, भाषा-अपभ्रंश जिस प्रकार याकिनीमहत्तरासूनु आचार्य हरिभद्रसूरि ने अपनी कृतियों में स्वयं के लिये "भवविरह" का प्रयोग किया है, उसी प्रकार विनयप्रभ ने भी अपनी रचनाओं में अपना उपनाम "बोधिबीज" का प्रयोग किया है। शिष्यपरम्परा-विनयप्रभ के प्रमुख शिष्य विजयतिलक और प्रमुख प्रशिष्य क्षेमकीर्ति हुए । विनयप्रभ की शिष्य परम्परा में अन्तिम यति श्यामलालजी के शिष्य यति विजयचन्द्र हुए, जो कि बीकानेर की बड़ी गद्दी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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