________________
ओगस्ट - २०१३
(३)
स्तम्भनपार्श्वपञ्चविंशतिकाना कर्ता विशे
जैनस्तोत्रसन्दोह-भाग २ (सं. - श्रीचतुरविजयजी, प्र. - साराभाई मणिलाल नवाब, वि. १९९२)ना पृ. ९५ - ९७ पर 'श्रीपार्श्वनाथस्तवनम्' एवा नामे अक अतीव प्रासादिक स्तोत्र छपायुं छे. २५ श्लोकना आ स्तोत्रमां श्रीस्तम्भतीर्थमण्डन स्तम्भनपार्श्वना दर्शने ऊगेली आन्तरिक लागणीओने आ स्तोत्रमां बखूबी व्यक्त करवामां आवी छे.
१०५
पुस्तकमां आ स्तोत्रने श्रीदेवसुन्दरसूरिजी (विक्रमना १५मा सैकाना तपगच्छपति) कृत जणाववामां आव्युं छे. 'जैन संस्कृत साहित्यना इतिहास 'मां पण प्रस्तुत स्तोत्र श्रीदेवसुन्दरसूरिजीना नामे नोंधायुं छे. स्तोत्रना अन्तिम श्लोकना चोथा चरणमां 'श्रीदेवसुन्दर' ओवा अक्षरो जोईने आ निर्णय थयो होय से सम्भवित छे.
परन्तु हमणां श्रीजैनआत्मानन्द सभा - भावनगरना हस्तप्रतसङ्ग्रहमां प्रस्तुत स्तोत्रनी प्रत जोई. ते प्रतमां पुष्पिकानो पाठ आम छे : " इति श्रीस्तम्भनकपार्श्वनाथ- पञ्चविंशतिका श्रीसोमसुन्दरसूरिभिरेकरजन्यां कृता ॥" (श्रीसोमसून्दरसुरिओ अक रात्रिमां रचेली स्तम्भनपार्श्वनाथपच्चीसी सम्पूर्ण थई.)
आ पुष्पिका परथी त्रण वातो फलित थाय छे : १. “स्फुरत्केवलज्ञानचारुप्रकाशं” ओवी पदावलीथी प्रारम्भाती स्तम्भनपार्श्वनाथपच्चीसीना रचयिता श्रीदेवसुन्दरसूरिजी नहीं, पण तेओना शिष्य श्रीसोमसुन्दरसूरिजी छे. २. कर्ताओ गुरुभक्ति निमित्ते स्तोत्रमां पोताना गुरुभगवन्तनुं नामाचरण कर्तुं छे. ३. आवी सुन्दर रचना अक रात्रिमां करवामां आवी छे, जे वात कर्तानी अप्रतिम विद्वत्ता सूचवे छे.
Jain Education International
स्तोत्रना २३मा श्लोकनुं चोथुं चरण (प्रायः प्रतमां न होवाने लीधे ) जैनस्तोत्रसन्दोह - भाग २मां अमुरित छे. आ चरण प्रस्तुत प्रतमां नीचे मुजब छे : " त्वमिन्दूयसे वा सुदृ दृष्टिचक्रे । "
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org