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________________ ओगस्ट - २०१३ अवधारणाएँ बनी - एक प्रमाण स्व-प्रकाशक है, और दूसरी प्रमाण पर(पदार्थ)-प्रकाशक है। प्रमाण परप्रकाशक है इस मत के समर्थक नैयायिक और वैशेषिक दर्शन थे, जबकि प्रमाण मात्र स्वप्रकाशक है इस मत के समर्थक विज्ञानवादी बौद्ध थे । जैनों के सामने जब प्रमाण के स्वप्रकाशकत्व और परप्रकाशकत्व का प्रश्न आया तो उन्होंने अपनी अनेकान्त दृष्टि के आधार पर उसे स्व-पर-प्रकाशक माना । सर्वप्रथम श्वेताम्बर परम्परा में आचार्य सिद्धसेन ने न्यायावतार (१) में, और दिगम्बर परम्परा में आचार्य समन्तभद्र ने सर्वार्थसिद्धि नामक तत्त्वार्थसूत्र की टीका (१/१०) में, इस मत का समर्थन किया, और इस प्रकार प्रमाण का जैनों ने जो लक्षण निर्धारित किया उसमें उन्होंने उसे 'स्व' अर्थात् अपने ज्ञान का तथा 'पर' अर्थात् पदार्थ-ज्ञान का प्रकाशक माना । बौद्ध पदार्थज्ञान को इसलिए प्रमाणभत नहीं मानते थे कि विज्ञानवादी बौद्ध ज्ञान से पृथक् ज्ञेय अर्थात् पदार्थ की स्वतन्त्र सत्ता ही नहीं मानते थे । आचार्य सिद्धसेन ने न्यायावतार की निम्न कारिका में इस बात को स्पष्ट किया है - प्रमाणं स्वपराभासि ज्ञानं, बाधविवर्जितम् ।। प्रत्यक्षं च परोक्षं च द्विधा, मेयविनिश्चयात् ॥ - न्यायावतार १ इस प्रकार न्यायावतार में प्रमाण का लक्षण करते हुए उसे स्व-पर दोनों का प्रकाशक माना है। साथ ही उसे बाधविवर्जित अर्थात् स्वतः सुसंगत भी माना गया है, सुसंगत होने का अर्थ है, अविसंवादित या पारस्परिक विरोध से रहित होना । इस प्रकार प्रारम्भ में प्रमाण के दो मुख्य लक्षण माने गये। इसके पश्चात् अकलङ्क ने बौद्ध परम्परा का अनुसरण करते हुए अष्टशती में बाधविवर्जित अर्थात् अविसंवादिता को भी प्रमाण का लक्षण स्वीकार किया। इसी क्रम में मीमांसको के प्रभाव से अकलङ्क ने अनधिगतार्थक या अपूर्व को भी प्रमाण-लक्षण में संनिविष्ट किया । अकलङ्क और माणिक्यनन्दी ने प्रमाण लक्षण के रूप में अपूर्व को अधिक महत्त्व दिया था। इस प्रकार जैन परम्परा में प्रारम्भ में प्रमाण के चार लक्षण माने थे – १. स्वप्रकाशक २. परप्रकाशक ३. बाधविवर्जित या असंविवादी ४. अनधिगतार्थक या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520563
Book TitleAnusandhan 2013 09 SrNo 62
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages138
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size11 MB
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