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एक ब्राह्मण विद्वान् उपर लखेल स्नेहपत्र छे. सम्भव छे के ए विद्वान् पासे ते साधुए अध्ययन कर्यु होय, अने तेथी पोताना विद्यागुरू तरीके तेमने तेमना माटे भक्तिभाव होय, जे आ पत्रमा तेमणे स्पष्टतः प्रगट कर्यो छे.
पत्रलेखक मुनि वृद्धिविजयजी छे. दशपुर नगरथी तेओए आ पत्र, ब्रनपुर (सूर्यपुर ?) वसता विद्वान् नागेश्वरभट्ट उपर पाठव्यो छे. २-८मां ब्रनपुर- वर्णन कर्यु छे. १०मां पत्रनी अपेक्षा दर्शावी छे. ११मुं पद्य भट्टनां विशेषणोथी छलकाय छे - प्रशंसात्मक पद्य. १२-१४मां पण भट्टनी ज प्रशस्ति छे. १५मां पोते भट्टने नमस्कार पाठवे छे, साथेज तेमना मित्र मदनभट्टने पण नमस्कार कहावे छे. पछीनां पद्योमां अनुनयपूर्वक जणाव्युं छे के में पूर्वे अनेक पत्र तमने लख्या छे, पण तमारा तरफथी एक पण प्रत्युत्तर नथी मळ्यो ! हुं तमारो छु ए जाणशो, अने कृपा करी पत्र लखजो, इत्यादि.
विज्ञप्तिपत्रोनी शोध चलावतां आ पत्र पण हाथ चडी गयो, तो ते अत्रे आप्यो छे.
५५-५८ आ चारेय पत्रो सूरतना ने.वि.क. ज्ञानमन्दिरथी प्राप्त थयेल छे.
हवे पछी, एक अङ्क प्रगट कर्या पछी, ६३मो अङ्क ते विज्ञप्तिपत्रविशेषाङ्कना त्रीजा खण्ड तरीके प्रगट करवानो इरादो छे. हजी केटलाक संस्कृत पत्रो बाकी रह्या छे ते, तेमज गुजराती अथवा मारुगूर्जर कही शकाय तेवी भाषामां अनेक विज्ञप्तिपत्रो उपलब्ध छे, ते बधा (प्राप्य) पत्रोना प्रतिलिपीकरण तथा सम्पादन- काम चाली रयुं छे. ते बधी सामग्री तैयार थयेथी आ विशेषाङ्कनो त्रीजो खण्ड प्रगट थशे. हजी पण कोई पासे के कोईनी जाणमां विज्ञप्तिपत्रो होय तो तेनी नकल अमने उपलब्ध करावे तो तेने पण ते अङ्कमां समावी शकाय ए ज निवेदन.
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