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(५७) सूरति-सूरत बन्दरथी विधिपक्षगच्छनायक आ. विद्यासागरसूरिए नान्दसमा (उ.गु.) गामे विराजता वा. मेघराजगणि पर लखेल आ प्रसादपत्री छे. तेमणे आमामी वर्षना क्षेत्र माटे आदेश (पत्रथी) मंगाव्यो हशे, अने तेनो उत्तर "तुमनैं श्रीनान्दसमा गुढलानौ आदेश 3 ते प्रीछजौ" एवा अन्तभागे लखायेल वाक्यथी आपवामां आव्यो छे, ए रीते आ पत्र प्रसादपत्र होवानुं स्वीकारी शकाय.. ___पत्रमां वृत्तान्त घणा विस्तारथी आलेखायो छे. पोते पत्तन-पाटणथी विहार करी नाग(बाई)नामे श्राविकाना आग्रहथी 'चान्दसमा' (चाणस्मा) आव्या, त्यां भट्टेवापार्श्वनाथने वांद्या (४). क्रमशः वैराटनगरे आव्या. वैराट ते हालतुं धोळका अथवा तेनी नजीकनो प्रदेश. त्यां कलिकुण्ड पार्श्वनाथने जुहार्या (६-७). त्यां गुरु अमरसागरसूरि हता, तेमनी पासे मासकल्प करी (१०) क्रमशः सूरत आव्या. त्यां प्रथम प्रवेश हरिपुरा कों, वेणि अद्दाक नामे श्रावके तेनो उत्सव को (११). जेठ शुदि पांचमे मोटा उपाश्रये आव्या, त्यां शाह कपूर संघवीए श्रीफल वहेंच्यां (१२), प्रवेशोत्सव कर्यो. आचाराङ्गनुं व्याख्यान, सिद्धान्तचन्द्रिकानुं पठन-पाठन; पर्युषण आवतां गामोमां अमारिघोषणा, कल्पसूत्र घरे लई जवू, घोडाना स्कन्ध पर पार्छ लावी वहोरावq, १० व्याख्यानो, 'द्वादशशत-बारसासूत्र'नुं वांचन, तपश्चर्याओ, प्रभावना तेमज लभ्यनिका - लहाणी, पारणां इत्यादि धर्मकार्योनुं विगते वर्णन थयुं छे, ते रसप्रद तेमज दस्तावेजी बनी रहे तेवू छे. बाकीनी वातो स्वयंस्पष्ट छे. पत्र पूरो थया बाद वि.सं. १७७९नी अंचलगच्छने अनुसारी पर्वतिथिनी टीप आपवामां आवी छे.
एक बाबत नोंधवी योग्य लागे छे. आ तमाम पत्रोमां लगभग पर्युषणतथा तेनां कर्तव्यो- ट्रॅकुं के विस्तृत वर्णन मळे छे. आमां क्यांय चौद स्वप्नदर्शन, तेना माटे बोली बोलाई - ए वातनो अछडतो पण निर्देश जडतो नथी. देवद्रव्यनी वृद्धिनी आवी विगतनी साव उपेक्षा शा माटे करी हशे? के पछी आ बाबतनी ते समय प्रवृत्ति ज शरु नहि थई होय ? गम्भीरताथी विचारवा जेवो आ मुद्दो लागे छे.
(५८) आ पत्र विज्ञप्तिपत्र पण नथी, प्रसादपत्रीं पण नथी. आ पत्र एक साधुजने
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