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करे, ते मूल्य शून्यवत् ज गणाय. थोडांक वर्ष अगाऊ, आ ज मुद्दा उपर मुम्बईहाईकोर्टमां केस चाल्यो त्यारे तेना विद्वान् न्यायमूर्तिश्रीए पोताना चुकादामां जणाव्यु हतुं के "मनुष्य ईश्वरनी - तेना कोई स्वरूपनी पूजा करे ते तो समजाय, पण एक माणस बीजा जीवता माणसनी पूजा करे - करावे - ए केटलुं योग्य छे ? ए समजमां आवतुं नथी. माणस बीजा माणसनी पूजा करे ए बराबर नथी." कोर्टना शब्दो याद नथी, भाव ज नोंध्यो छे. शास्त्र, सङ्घ तथा आचार्यो करतांय कोर्टने वधु माननारा लोको, कोर्टना आ मुद्दाने सगवडपूर्वक चातरी शके छे. ढूंकमां, सम्पादकनुं काम तो सामे जे कृति होय तेने तेना शक्य एटला शुद्ध रूपमां तैयार करी प्रकाशित करवी तेटलुं ज छे. तेमां वर्णित वातो-पदार्थो-घटनाक्रमो साथे सहमत-असहमत थवानो सम्पादकने कोई अधिकार न होय. एटले सम्पादकने नामे आवी तुच्छ वातोमां राचनारा लोको आ पत्रगत अङ्गपूजानो उल्लेख जोईने हजी पण कोई प्रचार करे तो ते निरर्थक प्रपञ्च सिवाय कशुं नहि होय. अस्तु.
श्रीजीतविमलजी माटे लेखकने भारे बहुमान छे तेम १०-१२ पद्यो परथी जणाई आवे छे. पोते स्तम्भतीर्थमां छे, त्यारे साथे सौभाग्यसागरसूरि नामक आचार्य पण त्यां छे तेवी सूचना पद्य १३ थी मळे छे. जीतविमलजीए ‘सादेव' नामे गृहस्थ साथे पहेलां पत्र मोकल्यानी नोंध पण छे (१८). सम्भवतः तेना ज प्रत्युत्तरमां आ प्रसादपत्री छे.
(५६) अपूर्ण अने वचमां क्यांक क्यांक तूटतो आ प्रसादपत्र (अंचलगच्छीय) आ. विद्यासागरसूरिए लखेल छे. क्यां अने कोना पर ते जाणी शकाय तेम नथी. लेखक-मङ्गलमां गौडी पार्श्वनाथने अने साथे पोताना गुरु अमरसागरसूरिने पण स्मरे छे. बुर्हानपुर (महाराष्ट्रमां खानदेश विस्तार)थी पत्र लख्यो छे. जालणा (जालना), औरङ्गाबाद आदि क्षेत्रोमां विचरीने तेओ बुरानपुरे चोमासुं आव्या छे. व्याख्यानमां विशेषावश्यक भाष्यनी टीका, वांचन थतुं होवानुं नोंध्यं छे. मोतीचन्द्र नामे प्रमुख श्रावक त्यां हशे, तेनुं नाम पण छे. पर्वनी उजवणी उत्तम ठाठथी थई तेनुं तथा प्रभावना, पारणांनुं विस्तृत वर्णन रसप्रद छे. पत्र २४ श्लोको पछी तूटे छे.
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