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(४५) उपाध्याय यशोविजयजीनी वधु एक पद्यरचना आ पत्र-खरडाना रूपे मळी छे, अने वळी ते तेमना स्वहस्ते लखायेल छे. झांखी अने लगभग गरबडिया कही शकाय तेटला बारीक अक्षरे लखायेला पत्रनी जेरोक्स परथी आ स्वरूपे नकल ऊतारतां श्रम तो खासो पड्यो, परन्तु महदंशे उकेली शकायुं तेनो सन्तोष घणो छे. आ पत्र ते लखवा धारेला मोटा/विस्तृत पत्रना मुख्य विभागोना काचा खरडा (Draft) समान छे. १. मङ्गलाचरण, २. नगरवर्णन, ३. ऊना नगर (द्रङ्ग)ना नामनुं वर्णन, ४. ऊनानुं ज वर्णन - आम ४ विभागो, खरेखर तो बे ज विभागोनू, पद्यात्मक वर्णन लेखके कयुं छे. दरेक वर्णन-विभाग माटे तेमणे एक एक पंक्ति रची छे, अने पछी दरेक श्लोकना चोथा चरणरूपे ते पंक्तिने गोठवीने, पादपूर्तिरूप श्लोको रचतां जईने, पोताने जेवू वर्णन करवू छे ते कर्यु छे. प्रथम विभाग माटे 'पलायते पञ्चमुखः करेणोः' एवं पद नक्की करीने पछी २० पद्यो ते पदनी समस्यापूर्तिरूपे गुंथ्यां छे. आमां तेमनी अगाध प्रतिभानां ज दर्शन आपणने थाय छे. बीजा विभाग माटे 'लोहितो जयति यामिनीपतिः' एवं पद रचीने ८ पद्यो वडे तेनी समस्यापूर्ति करी छे. त्रीजा विभागमां 'तथोन्नतद्रङ्ग इहोन्नतत्वम्' पद बनावीने ८ पद्योथी पादपूर्ति करी छे, तो चोथा विभाग माटे ‘मन्ये निशायामुदितो दिनेशः' एवं पद नक्की करीने तेनी पादपूर्ति रूपे १० श्लोको रच्या छे.
___अमदावाद चोमासुं करीने ऊना पधारनार विजयदेवसूरि उपर लखवा धारेलो आ पत्र होय तेवो आशय अनुमानी शकाय छे. चोथा विभागमा ८मुं पद्य अन्तर्लापिकानुं सुन्दर उदाहरण बन्युं छे.
प्रतमा उपाध्यायजी भगवन्ते स्वहस्ते घणा सुधारा कर्या छे. आवा सुधारेला स्थळे सुधारेलो पाठ मूळमां राखी जूनो पाठ टिप्पणमा 'प्रापा०' ओवी निशानी साथे नोंध्यो छे. उपाध्यायजी भगवन्ते अमुक स्थळे करेली अर्थसूचक/ विभक्तिसूचक टिप्पणो पण 'टि.' ओवी संज्ञा साथे नोंधी छे. टिप्पणमां ५.१नो अर्थ ५मी विभक्ति-अकवचन छे. 'रा'नो अर्थ 'पलायते' ने बदले ‘परायते' करवं - अवो समजवानो छे.
आ पत्रनी नकल राधनपुरना श्रीलावण्यविजयजी ज्ञानभण्डारथी उ.
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