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भुवनचन्द्र म. द्वारा मळी छे.
(४६) उपाध्याय मेघविजयजी ए १७मा-१८मा सैकाना बहुश्रुत विद्वान् अने ग्रन्थकार साधुपुरुष छे. तेमनां खण्डकाव्य जेवां विज्ञप्तिपत्रो - मेघदूतसमस्यालेख, सेवालेख वगेरे अन्यत्र प्रसिद्ध छे. ते ज शृङ्खलामां मूकी शकाय तेवो काव्यात्मक पत्र तेमणे लखवा लीधो हशे तेवू, आ पत्रांशरूपे प्राप्त पत्रना (अधूरा) मङ्गलाचरणना ज फक्त २८ पद्यो जोतां कळी शकाय छे. २८ पद्योमां भगवान ऋषभदेवनी ज वातो करी छे. मङ्गलाचरणनी आ छटा जोतां आखो पत्र पत्र नहीं, पण पत्र-काव्य ज होय, एम कहेवामां अत्युक्तिदोष जणातो नथी. आ पत्रनी प्रति जोधपुरना राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठानमां सचवाई छे, तथा त्यां तेना पर कर्ता तरीके मेघविजयजीनुं नाम लखेल छे, तेथी अत्रे तेमना नामे ज आ पत्र मूकवामां आव्यो छे. उ. भुवनचन्द्र म. द्वारा ओ प्राप्त थयेल छे.
(४७) पाटणथी पं. लब्धिविमलजीए जीर्णदुर्ग-जूनागढ विराजता (सम्भवतः विजयदेवसूरि) गुरु उपर लखेलो, अपूर्ण-प्राप्त आ पत्र ६३ श्लोक जेटलो छे. सौराष्ट्रनो उल्लेख (१४) तथा जीर्णदुर्गनो उल्लेख (५२) जोई शकाय तेम छे. बाकी सघळां पत्रोनी जेमज नगरवर्णन आदि छे. राजवर्णन छे, पण राजानुं नाम लख्यु नथी. आ पत्र ला.द.विद्यामन्दिरनो हशे, पण तेनी जे० नकल मुनि श्रीधुरन्धरविजयजी द्वारा प्राप्त थयेल छे.
(४८). आ पत्र तपगच्छपति (विजयप्रभसूरि?) उपर रङ्गविजयजीए लखेलो छे. क्यांथी लख्यो छे ? क्यां लख्यो छे ? ते जाणी शकातुं नथी. पण मारवाडमां ज लखायो होय ते वधु सम्भवित छे. गच्छपतिना चित्तमां कशीक चिन्ता वर्ते छे : साधुवर्गमां तथा अमुक क्षेत्रोना श्रावकोमां बे भाग पडी गयानी तेमने दहेशत हशे तेवू पत्र वांचतां जणाय छे. लेखक १ ज श्लोक द्वारा तेनुं निर्मूलन करी वाळे छे, अने सप्तच्छदी (सादडी), वन्ध्यपुर, घ्राणपुर (घाणेराव), देवसूरि (देसूरी), नाडूल, खीमेल, साण्डेराव इत्यादि क्षेत्रोना लोको स्वपक्षमां ज स्थिर होवा- भारपूर्वक जणावे छे. आनन्दपुरना गोकल नामक मनुष्य जोडे 'गूढपाट'
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