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________________ ज करेली छे. आ पत्र विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रहमां प्रकाशित होवाथी अत्रे मुद्रित नथी को. प्रतमां ते पत्र पूर्ण थया बाद प्रस्तुत पत्रांश लखवामां आव्यो छे. लेखके जो के अनाभोगवश आ पत्रांशने पहेला पत्रनो ज भाग गणी पत्रांशना पहेला श्लोकने ९८ मो क्रमाङ्क आप्यो छे. पण वास्तवमां आ श्लोको, कोईक पत्र के जे सम्भवतः लावण्यविजयजीओ ज लखेलो हशे तेनो, नगरवर्णन धरावतो अंश छे. आ पत्र जे पूज्य पर लखायो हशे ते ते समये मेवाडना उदयपुर नगरमां हशे तेम आ वर्णन परथी समजाय छे. पत्रमा छेल्ले जे गद्यांश छे ते ईडरने सम्बन्धित छे. आ गद्यांश कोईक त्रीजा ज पत्रनो अंश हशे? पत्र सम्पूर्ण मळे तो ज आ वात नक्की थाय. प्रतमां हजु घणी जग्या खाली छे अने छतां पत्र अपूर्ण छे, तेथी अम जणाय छे के प्रतलेखकने पण पत्र अपूर्ण ज मळ्यो हशे. (४४) आ एक प्राचीन पत्र छे, जेनुं ऐतिहासिक मूल्य घणुं आंकवू घटे. अपूर्ण होवा छतां जेटलो भाग मळ्यो छे ते पण ओछो मूल्यवान् नथी. १५मा शतकनो आ पत्र छे. कोणे अने क्यांथी लख्यो छे तेनो अन्दाज मळतो नथी, पण अहम्मदावादनगरे विराजता वाचक श्रीहेमहंसगणि उपरनो आ पत्र छे ते तो स्पष्ट छे. हेमहंस गणि ए व्याकरणविद्याना अभ्यासीओ माटे श्रीहेमचन्द्राचार्य जेवू ज आदरणीय नाम छे. तेमणे रचेल न्यायसङ्ग्रह-वृत्ति, षडावश्यक-बालावबोध सहितना ग्रन्थो आजे पण अध्ययननो विषय छे. पत्रगत ४ था चित्रकाव्यात्मक पद्योमा हेमहंस ए नाम जे रीते, एकेक चरणमां एकेक अक्षर ३-३ वार आवर्तन पामे तेम गुंथ्यो छे, तेमां लेखक, अद्भुत काव्यकौशल तो प्रगट थाय ज छे, पण तेने हेमहंस गणि माटे केटलो अहोभाव हशे ते पण तेमां व्यक्त थई जाय छे. अमदावादमा 'पातसाहि'नुं त्यारे राज्य होवू जोईए, जवेरी माटे ‘यवहरि' शब्द प्रयोजायो छे; ते समये त्यां सङ्घना आगेवान मन्त्री वीसल नामे ब्रह्मचारी श्राद्ध हशे; आ वातो पत्रथी जाणवा मळे छे. लेखक ज्यां हशे ते गाममां पर्युषणमां कल्पसूत्रनी ९ वाचना अने तेमां ९ प्रकारनी प्रभावना इत्यादि कर्तव्योनी आछेरी नोंध पण ध्यानार्ह छे. तत्रस्थित साधुओनां अने साध्वीओनां नामो पण नोंधपात्र छे. पत्रनो थोडोक अंश बाकी रही गयो होय तेम लागे. आ पत्र ला.द. विद्यामन्दिरमा हशे. अमने मुनि धुरन्धरविजयजीए तेनी जे० आपेल छे. Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520562
Book TitleAnusandhan 2013 07 SrNo 61
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages300
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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