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पत्र २, ३५मा पद्यपर्यन्त ज उपलब्ध छे, शेष अंश त्रुटित छे. मङ्गल, नगरवर्णन, गुरुवर्णन ए क्रमे ज आ पत्र पण चाले छे. पत्र १मां ३६मामां अने पत्र २ मां २०मा पद्यमां 'लक्ष्मीनिकेतन' तथा 'लक्ष्मीक्रीडागृहे' एवो शब्द नगर माटे प्रयोजायेल छे, तेथी लक्ष्मीपुर के लक्ष्मीनिवासपुर के एवं कांई नगर - नाम होई शके ? एवो प्रश्न थाय. जोके ते तो ऐतिहासिक सन्दर्भों मेळवीए तो ज जाणी शकाय. आ बन्ने पत्रो कोबा - श्रीकैलाससागरसूरि ज्ञानभण्डार तरफथी सांपड्या छे.
( ४१ )
महदंशे गद्यात्मक अने अपूर्ण प्राप्त आ पत्र, दधिपद्र (दधिस्थलीदेथळी) थी श्रीविनयवर्धने, रायधन्न ( राधन) पुरे विराजता विजयदेवसूरि उपर, सं. १७०२मां लख्यो छे. लेखकनी चमत्कृति - जनक विद्वत्ता पत्रना विशिष्ट गद्यपाठमां सुपेरे झळके छे. अन्यथा आ एक सामान्य पत्र छे, जेमां चोमासा व. नां कार्योनुं निवेदन होय छे. विनयवर्धनना अन्य विविध पत्रो 'विज्ञप्तिलेखसङ्ग्रह' आदिमां प्रकाशित छे. आ पत्र पाटणना सागरगच्छ जैन ज्ञानभण्डारमाथी प्राप्त थाय छे.
( ४२ )
आ पत्र मुनि हीरचन्द्रे विजयदेवसूरिने पाठवेलो छे. ते अपूर्ण प्राप्त थयो छे. ते त्रुटित पण छे. प्रथम १ पद्य पछी २ - २४ पद्यो त्रुट्यां छे (नथी), अने २५ माथी पत्र आगळ वधे छे. अन्य पत्रो जेवो ज वर्णनक्रम छे. १२ दिननुं अमारि प्रवर्तन (४०) ए लगभग घणा पत्रोमां खास वांचवा मळे छे. सम्पादके नोंध्युं छे तेम, आ पत्रमांना घणा श्लोको, लेखकना गुरु मेघचन्द्रे विजयसिंहसूरिने लखेल पत्रमां (आ अङ्कमां पत्र क्रमाङ्क ११) पण जोवा मळे छे. ५७मा पद्य पछीनो पत्रांश अपूर्ण ज रह्यो छे. आ पत्र सूरत ने.वि. क. ज्ञानमन्दिरथी मळेल छे.
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आ पत्रनी हस्तप्रत जैन आत्मानन्दसभा - भावनगरथी मळी छे. प्रतमां पहेलां ‘स्वस्तिश्रीकमनीयमंड्रिकमलं' ओवा मङ्गलाचरणथी शरु थतो अने ९७ श्लोकोमां पथरायेलो सुन्दर पत्र लखेलो छे. आ पत्रनी रचना लावण्यविजयजीओ
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