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(३७) आ पत्र त्रुटित पण छे, अपूर्ण पण छे. जोके १ थी ६५ पद्यो नथी मळतां, पण अन्त भागनो तो थोडोक ज अंश नथी मळ्यो एम जणाय छे. आ पत्र कोणेक्यांथी अने क्यां लख्यो छे ते स्पष्ट नथी थयुं, पण ते हीरविजयसूरि उपर लखायो छे ते स्वयंस्पष्ट छे. अनुमान एवं थाय छे के आ पत्र तेओ दिल्लीआगरा तरफना विचरणमां हशे त्यारे लखायो होवो जोईए. केमके, पत्रव्यवहारनी सामान्य पद्धतिथी तद्दन अलग रीते, आ पत्रमा अलग अलग क्षेत्रोमां चोमासुं रहेला मुनिओनी विगत लखी छे. आq कदी थतुं नथी. पण गच्छपति गुरु दूर देशमां होय अने तेमने गुजरातना बधानो हेवाल एक साथे जाणवा मळी जाय; केमके दरेकने ते देश सुधी विज्ञप्तिपत्र लई जनारा न ज मळे; ते हेतुथी ज आवी विगतो पत्रमा उमेरी होय एम लागे छे. बीजुं एक अनुमान एम पण थाय के आवी विगतो कोण लखे ? ए लखवानो अधिकार कोने होय ? गुरुना सीधा उत्तराधिकारीने ज होय अने ते ज स्वाभाविक गणाय. एटले आ पत्र विजयसेनसूरिए ज गुरुने लख्यो होय एम मानवानुं मन पण वधे छे.
६५-७७ मां गुरुगुणवर्णन ज छे. ७८-७९ प्रमाणे, गुरुनो एक लेख(पत्र) पत्रलेखकने मळी गयो छे, तेने 'लेख-देव' जेवो गणावी ते मळवाथी पोतानुं दिल अत्यन्त राजी थयानुं वर्णव्युं छे. साथे ज ते लेख माटे लख्युं छे के (ते पत्रने कारणे) शिशु (लेखक पोताने शिशु वर्णवे छे)ना चित्तमां (तेनुं) शैशव अने (गुरुए लखीने याद अपावी हशे तेवा शैशवनी) वातो पण जागी गई ! आq एक ज व्यक्ति लखी शके : विजयसेनसूरि; अन्य- गजु नहि. पत्रमां वर्णव्या प्रमाणे क्षेत्रो तथा त्यां स्थित मुनिओनी (मुख्य मुनिनां नामोनी) नोंध आ प्रमाणे छ : उसमानपुर वानरर्षि राजधनपुर विनयसुन्दर राजनगर पं. ज्ञानविमल कुमरगिरिपुर विजयसागर वटपल्ली पं. पद्मविजय विश्वलपुर (वीसलपुर) पं. मुनिविजय सिद्धपुर कृष्णर्षिगणि महीशानपुर (महेसाणा) पं. श्रीवन्तमुनि विद्यापुर पं. कीर्तिसार कटी (कडी) पं. शुभविजय
८९ थी ९३मां हीरगुरु-सहवर्ती वा. विमलहर्ष, पं. सोमविज आदिनां
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