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(३); कमा-सूनु (विजयसेनसूरि) सागर चक्रवर्ती जेवा थया के जेमणे जम्बूद्वीपसमान तपगच्छमांथी 'सागर'ने बहार कर्या (४); पं. रामविजय नामे बे विज्ञो ते बलदेव-वासुदेव जेवा गणाय के जेमणे 'वार्द्धि(सागर)'ने खदेडीने 'हीर' (सूरि)नी आज्ञारूपी द्वारिकानी स्थापना करी(५). ते युगमां चालता विवादोनुं आ श्लोकोमा प्रतिबिम्ब पड्युं छे तेटलो ज आनो अर्थ.
ते पछी एक सुमधुर गेय फग्गुकाव्य, जयदेवनी अष्टपदीनी परम्परानुं 'अने भगवान महावीरनी स्तवनारूप, ते पत्रमा लखायुं छे. पत्रमा जेटलुं हतुं ते सघळु यथावत् अहीं प्रगट कर्यु छे. आ पत्र पण मुनि धुरन्धरविजयजी तरफथी मळेल छे.
(३५) आ पत्र जयपुरना श्रावकसङ्के शुभनगरमां विराजता मुनि रत्नविजयजीने लखेलो क्षमापनापूर्वकनो विज्ञप्तिपत्र छे. पत्र नानूलाल दाधीच नामे ब्राह्मण पण्डिते घडी आपेल छे, तेमनी तार्किक तथा वैयाकरण प्रतिभानां छांटणां पत्रमा सरस रीते छंटायेलां जोवा मळे छे.
आ पत्र सचित्र छे. तेनां चित्रो अन्यत्र प्रकाशित छे. मुम्बईना श्रीप्रेमलभाई कापडियाना अंगत सङ्ग्रहना आ पत्रनी नकल तेमना सौजन्यथी मुनि सुयशसुजसचन्द्रविजयजीने प्राप्त थई छे.
___ आ पत्र त्रुटित छे छतां तेनुं मूल्य घणुं छे. जो अखण्ड मळ्यो होत तो तेनुं दस्तावेजी तथा ऐतिहासिक मूल्य हजी वधी जात. कोणे अने क्यांथी पत्र लख्यो छे तेनो कोई संकेत पत्रमाथी मळतो नथी, परन्तु तातपादने पत्र लखवानी विनंति कर्या बाद, तेमनी साथेनां श्रीहीरविजयसूरि आदिनां नामो जोतां आ पत्र भ. विजयदानसूरिगुरु उपर ज लखायो होवा विषे सन्देह रहेतो नथी. पत्र २० थी २९ एम ९ ज पद्यो जेटलो मळे छे. आमां मङ्गल अने नगरवर्णनो नथी मळतां; फक्त त्रुटित गुरुवर्णननां पद्यो ज मळे छे पण तेमां जे भावप्रौढि छे ते जोतां कोई अतिनिपुण प्रतिभानुं आ सर्जन हशे एम स्वीकारवू पडे तेम छे. आ पत्र पण सूरतना ने.वि.क. ज्ञानमन्दिरमांथी मळेल छे.
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