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७२-७५मां वसहीपुरनुं वर्णन छे. आ 'वसही' एटले कयुं गाम ते ख्याल आवतो नथी. कच्छना भद्रेश्वरतीर्थ- ग्रामनाम 'वसही-वसई' होवा- प्रसिद्ध छे. आ ते ज हशे ? साधनो तपासवां पडे. त्यां ते वखते 'सांईदास' नामे ठाकोर शासकपदे होय तेवं सूचन ७२मां पद्यथी मळे छे. त्यां स्थित, वाचक भानुचन्द्रगणिना शिष्य देवविजय द्वारा आ पत्र लखवामां आव्यो छे (७६-७७). सामान्यतः पत्रलेखक पोतानी ओळख पोताना गुरुर्नु नाम लईने-तेमना शिष्य तरीके आपे एवं जोवा मळतुं नथी. अहीं प्रथम वार तेम जोवा मळे छे. ७५-८२मां पत्रलेखक वन्दन, विज्ञप्ति, पोतानां धर्मकृत्यो आदिनुं निवेदन करे छे. ८१मां पद्यमां 'गुरोः समीपे पठनं' एवं वाक्य छे ते जोतां एवं अनुमान थई शके के पत्रलेखक तेमना गुरुनी साथेज वसहीपुरमा हशे, एटले के वाचक भानुचन्द्रजी पोते त्यां होवा जोईए.
८३ थी शरु थतुं गुरुवर्णन १३२ पर पूरं थाय छे. तेमां ८३-८४-८५ मां यमक, व्यक्षर श्लोकद्वय कविनी प्रतिभाने उजागर करनारी रचनारूप छे. समग्र पत्रकाव्यमां कविए प्रयोजेतुं छन्दोवैविध्य पण तेमनी महती प्रतिभानु ज द्योतक छे. ११७-१८ बे दण्डक छे, तो ११९ थी १३१ मां विविध छन्दो तो प्रयोज्यां ज छे, पण ते दरेक पद्यमां ते ते छन्दनां नाम पण गुंथी दीधां छे. अहीं ते छन्दनामो मोटा अक्षरे ऊपसावी बताव्यां छे. १३४-३५मां प्रसादपत्र पाठववानी विज्ञप्ति करीने १३६-३७मां ते मळवाथी पोताने थनारा लाभो कवि वर्णवे छे. विज्ञप्ति केवी आर्जवपूर्ण होय ते आ बधुं वांचतां समजाय. पछीनां पद्योमां पण विज्ञप्तिनो ज काकलूदीभर्यो सूर संभळाय छे, अने तात-दर्शननी तीव्र झंखना पण व्यक्त थाय छे. तातचरणनी सेवा, दर्शन मेळवनारा मुनिओने प्रशंसे छे, अने छेल्ले त्यां रहेला मुनिवरोनां नाम लेवानुं शरु थयुं छे त्यां ज पत्र तूटे छे अने आपणा पूरतो ते पूरो थाय छे. ला. द. विद्यामन्दिरथी सांपडेलो आ पत्र जो पूर्ण रूपे मळी आवे तो काव्यसाहित्यने एक अपूर्व रचनानी भेट मळे.
(२९) आ पत्र, तेनी अन्त्य पुष्पिकामां जणाव्या प्रमाणे उपाध्याय विनयविजयजी उपर लखवामां आवेलो पत्र छे. तेओ जूनागढ हता त्यारे राजकोटथी मुनिहीरचन्द्रे आ लघु पत्र पाठव्यो छे. राजकोटमां भगवतीसूत्रनुं वांचन, १६ दिननी अमारिघोषणा
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