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इत्यादि कार्यो ते समये थयानी नोंध ध्यानार्ह छे. पत्र सम्भवतः १८मा शतकना आरम्भे लखायेलो हशे. सूरतना ने. वि. क. ज्ञानमन्दिरथी आ पत्र प्राप्त थयेल छे.
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पाटण-स्थित वा. लावण्यविजयजी उपर मेघचन्द्रमुनिनो आ लघुपत्र छे. क्यांथी लख्यो छे तेनो उल्लेख नथी, परन्तु पत्रना पाछला गद्यभागमां योगोद्वहन अंगे जे वाक्यो छे, ते बधां ज आ अङ्कना ११मो क्रम धरावता, आ ज लेखकना पत्रमां पण जोवा मळे छे. ते परथी बे वात समजाय छे : एक तो विजयसिंहसूरिगुरु पाटण रह्या हशे त्यारे वा. लावण्यविजयजी पण त्यां ज हशे अने बीजुं आ पत्र पण, ११मा पत्रनी साथे ज मण्डपदुर्गथी लखवामां आव्यो होवो जोईए. आमां 'भुजनगर' नो उल्लेख एम सूचवतो जणाय छे के योगोद्वहन करावो तो 'भुज' मां करवा ठीक पडशे. आ पत्र पण सूरतना ने. वि.क. ज्ञानमन्दिरथी मळ्यो छे. ( ३१ )
राजस्थानमां फलवर्द्धा (फलोधी) मां विराजता पोताना गुरु वाचक अमरचन्द्र उपर, थान्दिलाणा नामक कोई गामे रहेल शिष्य मुनि कर्मचन्द्रे लखेल आ पत्रमां, केटीक अशुद्धि होवा छतां लेखक नो काव्य - व्याकरणादिविषयक परिश्रम ध्यानाकर्षक गणाय तेवो छे. लेखके १७ पद्यो पछी लखेल गद्यांशमां पोतानी हैयावराळ ठलवी छे अने गुरुने आर्जवपूर्वक ठपको आप्यो छे के तमे दूर केम चाल्या गया ? तमारा वगर मारो एकएक दिवस वर्षसरीखो जाय छे ते हं केम वर्णवुं !
गुरु-शिष्य प्रायः खरतरगच्छना होय तेम अनुमान थाय छे. छेल्ली पंक्तिमा तपगच्छीय साधु 'सागर' नो जे रीते उल्लेख थयो छे ते जोतां आ अनुमान दृढ थाय छे. आ पत्र निजी सङ्ग्रहनो छे.
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मङ्गलपुर - मांगलोर - मांगरोळमां विराजता, लोंकागच्छना, पं. लब्धिचन्द्रजी उपर वीरमगामथी मुनि गुणचन्द्रजीए लखेल ४५ पद्यप्रमाण आ विज्ञप्तिपत्र अन्य पत्र जेवो ज वर्णनक्रम धरावे छे, पण तेनुं छन्दोवैविध्य तथा सारी काव्यात्मकता भावकनुं ध्यान जरूर खेंचे छे. ३०-३१-३२ पद्योमां पोताना गच्छपति श्रीपूज्यना वृत्तान्त विषे, सम्भवतः तेओ सूर्यपुर-सूरत हशे ते विषे, चातुर्मास पछीना
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