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मुनि परमाणन्दे लख्या छे. प्रथम पत्र तेओ पटियाला (पंजाब) हता त्यारे, अने बीजो तेओ जेसलमेर हता त्यारे लखेल छे. ३५ श्लोकना प्रथम पत्रमा १ पद्यना मङ्गल बाद पटियालानुं वर्णन छे. त्यां ते समये 'कर्मसिंह' राजा छे तेवू त्रीजा पद्यथी जाणवा मळे छे. सूरि साथेना रघुनाथजी आदि शिष्योनां नाम १७-१९मां मळे छे. पद्य २१थी लेखक पोतानो वृत्तान्त शरु करे छे. पर्व-कृत्योर्नु वर्णन छे. सं. १८९०ना आसो शुदि १३ना आ पत्र लखेलो छे. आ सूरिनुं विचरण केटला दूर-प्रदेश सुधी विस्तरेलुं हशे, ते आ उपरथी जणाय छे.
२६मा पत्रमा ३४ पद्यो छे. बीजा श्लोकथी जेसलमेर- वर्णन शरु थयु छे, तेमां त्यां गजसिंह नामे राजा (५) होवामुं, 'अमरसागर' सरोवर होवा- (९) लेखके नोंध्युं छे. ११ थी गुरुवर्णन छे, तथा तेमना शिष्योनां नामो व. छे. पोते विक्रमपुरनी नजीक आवेल मानुजग्रामे रहेला छे तेनुं तथा साथेना साधुओनां नामादि पण छे. विज्ञप्ति निवेदन अने ते पछी पर्वकृत्य-निवेदन करीने पत्रनुं समापन थयुं छे, पत्र १८८४ मां लखायो छे. आ पत्रमा ११मा पद्यमां 'लुङ्कागच्छ' नाम छे, अने ते अहिपुर (नागपुर)मां प्रवर्यो होवानी पण वात छे. आ बन्ने पत्रो निजी सङ्ग्रहमां छे.
(२७) आ पत्र पण अमृतसर (पंजाब) विराजता, लोंकागच्छीय आ. रामचन्द्रजी उपर लक्ष्मीनिवास (?) नामे नगरमां स्थित रघुनाथमुनिए लखेलो छे. आ पत्नी मोटी विशेषता ए के ते प्राकृतभाषामां गाथाबद्ध-पद्यबद्ध छे, जे विरल गणाय. प्राकृत तेमज संस्कृतमां गद्य भाग पण खरा ज. ३२ गाथा के श्लोकप्रमाण आ पत्र, लेखकना लखवा प्रमाणे घणो लांबो थई शकत, जो लेखके पोते बनावेली सघळी गाथाओ लखी दीधी होत. पण तेओ खुद लखे छे के "अत्र गाथास्तु भूयस्य एव दृब्धाः, परन्तु त्वरावशात् लिखितुं न पार्यते ।" अर्थात् घणीबधी गाथाओ बनावी होवा छतां, (पत्र लई जनारने) उतावळ होवाथी, बधी लखी नथी. आ उपरथी लेखक सारा विद्वान तेमज प्राकृतना जाणकार हता तेवू सिद्ध थाय छे.
प्रारम्भे २ मङ्गलाचरणना श्लोक संस्कृतमां,* पछी १-३२ प्राकृतमां. बीजा श्लोकमां 'सुधादिमसर:संज्ञे पुरे' तथा ८मी गाथामां 'अमरसरणामरुइरे' एम बे
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