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२२मो पत्र जालोर-स्थित खरतरगच्छना भ. जिनसुखसूरि उपर उपा. विद्याविलास गणिए सोजतथी लख्यो छे. गद्यात्मक छे. गद्य पण अलङ्कृत अने रसाळ छे. पहेलां जालोरनुं वर्णन, पछी गुरुनुं वर्णन, पछी सोझितनगरनुं वर्णन, पछी नामो अने कृत्यनिवेदन - आम क्रम छे. विशेष वातोमा २०५ जेटला पौषधार्थीने घी-खाण्डथी छलकाता ४ लाडूनी प्रभावना करवामां आव्यानो रसिक उल्लेख छे. अने पोताना आ लघुपत्रने ‘पत्री' रूपी पुत्री गणावी तेनुं पाणिग्रहण करवानी विनंति करी छे ते वाक्यो पण आनन्द उपजावे तेवां रसिक छे. आ पत्र निजी सङ्ग्रहनो छे.
(२३) - जहन्नाबादमा रहेल खरतरगच्छीय जिनसुखसूरि उपर राजनगरस्थित श्रीलब्धिविजयजीए लखेल आ लघु पत्र एक सामान्य पत्र छे, पर्युषणनो क्षमापत्र नहि. तर्कशास्त्रनी भाषानो प्रयोग थयो छे ते ध्यानपात्र छे. पोताने गुरुनो पत्र नथी मळतो तेनी फरियाद लेखके करी छे. ला. द. विद्यामन्दिरस्थित आ पत्रनी जेरोक्स मुनिश्री धुरन्धरविजयजी द्वारा मळी छे.
(२४) मेडतास्थित खरतरगच्छीय भ. जिनलाभसूरिने जयतारण (राजस्थान) स्थित वाचक जीवनदासे लखेलो २३ पद्यप्रमाण आ पत्र पण सामान्य पत्र छे. तेमां गुरुस्तुति करतां तेमणे बे आर्या स्तुतिरूपे लखी-मोकली छे अने तेनो अर्थ सभ्यजनो पासे करावी मगाव्यो छे ते रसप्रद छे (१६-१८). १९मा श्लोकमां लेखक एक विवादनी वात करे छे के "मारे ज्यां चोमासु रहेवानुं नक्की थयेखें त्यां जो तमे रहो, तो तमारा चातुर्मास-स्थाने मने मोकलवो जोईए, अने एमां ज न्याय गणाय." लागे छे के आचार्ये ते प्रमाणे कर्यु नथी, एटले अकळायेला लेखक २०मा पद्यमां 'राजा जे करे ते ज न्याय' एम कहीने जाणे छणको करे छे ! सं. १८२९ ना भाद्रपदनी पूनमे लखवामां आवेला आ पत्रनी नकल कोबाथी प्राप्त थयेल छे.
(२५-२६) आ बे पत्र लोंकागच्छीय आ. लक्ष्मीचन्द्रजी उपर विक्रमनगर (बीकानेर)थी
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