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अलङ्कार - छन्द - चित्रकाव्य आदिनुं गुम्फन - आ बधुं दर्शाववानी पूरी मोकळाश रहेती, ते आ सङ्ग्रहगत अमुक पत्रोनां अध्ययनथी समजी शकाय छे. अलबत्त, बधां पत्रो तथा पत्रलेखको पासे आवी क्षमतानी आशा न ज रखाय; केटलाक आ-१४मा पत्र जेवा सामान्य पत्र पण होय ज. परन्तु तेनाथी पण एक वात तो जाणवा मळे ज के थोडीक पण संस्कृतभाषानी फावट होय तो तेओ संस्कृतमा ज पत्र लखता ज. दुर्भाग्ये, आजकाल आ परिपाटी तद्दन नामशेष थई गई छे. फलतः साधुवर्गमां कल्पनाशक्ति तथा काव्यप्रतिभानी सर्वथा खोट पडी चुकी छे. अपवाद हशे ज, परन्तु तेवा लोकोने पण उत्तेजन मळे तेवू व्यापक हवामान तो अदृश्य ज थयुं छे. आ परिप्रेक्ष्यमा १५माथी १९मा सैका सुधी चालेला आवा विज्ञप्तिपत्रोना जमानानुं मूल्य आंकीए त्यारे चित्तमां अहोभाव सिवाय कशुं ज न थई शके. अस्तु.
(१५-१६) आ बे पत्रो उपाध्याय यशोविजयजीए लखेला छे, तेथी तेनुं दस्तावेजी मूल्य घणुं वधी जाय छे. बन्ने पत्रनी नकल विविध स्रोतो द्वारा त्रण वार मळी छ : प्रा. डॉ. कविनभाई शाह (बीलीमोरा) द्वारा, उपा. भुवनचन्द्र म. द्वारा तथा शा. बाबुलाल सरेमल द्वारा. बन्ने पत्रो धरावती प्रत राधनपुरना श्रीलावण्यविजय ज्ञानभण्डारनी छे. उपा. भुवनचन्द्रजी द्वारा सांपडेली नकल सौथी वधु सुवाच्य होई तेना आधारे प्रस्तुत सम्पादन थयुं गणाय.
पत्र १५ ते राजनगर-स्थित श्रीयशोविजयजीए वर्गवटी-वगडी नगरमां विराजता गच्छपति विजयप्रभसूरि उपर लखेलो, ४१ पद्यप्रमाण पत्र छे. थोडोक वचमां गद्यभाग पण छे. आमां क्रम आ प्रमाणे छ : देववर्णन (मङ्गल), वर्गवटीवर्णन, राजनगरवर्णन तथा धर्मकृत्यवर्णन, गुरुवर्णन, नामावली (गद्यभाग) अने समाप्ति. प्रान्ते पोते ज पत्रने 'विज्ञप्तिलेख' तरीके ओळखावे छे. पत्रना अवशिष्ट भागमां केटलीक गाथा तथा श्लोकोनी नोंध छे. महत्त्वनी वात ए के आ समग्र लेख उपाध्यायजीना स्वहस्ताक्षरमां छे. एकाद स्थाने अक्षरो तूट्या पण छे. कविना कल्पनावैभवने पण जोईए :
पहेला ज पद्यमां प्रथमनां ३ चरणोमां कवि मस्त विरोधालङ्कार गुंथी बतावे छे. 'गुरुरपि कविप्रेमपात्रं'मां जे श्लेष छे ते तो कमालनो छे ! 'गुरु
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