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बहुमानपूर्वक स्मरण छे, अने अहीं पत्र अटकी जाय छे.
(११) ११मो पत्र ७० जेटलां पद्यो धरावे छे, अने मण्डपदुर्गे (माण्डूमाण्डवगढ) रहेला मुनि मेघचन्द्रे पत्तन-पाटण-स्थित गच्छपति विजयसिंहसूरिने लखेल छे. आमां पण सामान्य क्रम प्रमाणे १-११ मङ्गल, १२-३२ पाटणवर्णन, ३३-४६ मण्डपदुर्गवर्णन, ४७-५४मां पर्व- तथा पुण्यकृत्योर्नु वर्णन, ५५-६२ गुरुवर्णन, ६३मां विज्ञप्ति, ६५मां गुरुनु तथा तेमना कुलनुं नाम, ६६६८मां गुरुसांनिध्यवर्ती मुनिगणनां नामादि, ६९मां स्वसहवर्ती २ मुनिनां नामादि वांचवा मळे छे. त्यार पछीना गद्यांशमां माण्डूनी नजीकना पडधरीपुर - मयाणी नामे गामनो उल्लेख करीने तेने 'द्विस्थानकयोग्य' (चातुर्मास-योग्य ?) गणावीने तेनो समावेश आदेशपट्टमां करवानी भलामण करी छे. ए समये गच्छपतिओ क्षेत्रादेशपट्टक प्रतिवर्ष बहार पाडता, तेमां विविध क्षेत्रोनां तथा कया क्षेत्रमा कोणे अने केटला मुनिओए चोमासुं करवू तेनां नामो जणाववामां आवतां. तेवा पट्टकमां प्रस्तुत गामना समावेश माटे आ भलामण छे.
वधुमां, पत्रलेखकनी योगोद्वहन तथा पदप्राप्ति परत्वे उत्कण्ठा होवानुं निवेदन पण आमां छे. तेमनी ए पण मांगणी छे के हुं विहार करीने आपनी छायामां आवं, त्यारे आपे आ कार्य माटे कोईकने आदेश आपवो. छेल्ले महावीरप्रभुनी ४ श्लोकात्मक स्तुति (थोय) छे. आ पत्र सूरतना श्रीनेमिविज्ञानकस्तूरसूरि ज्ञानमन्दिर तरफथी प्राप्त थयो छे.
(१२) . राजनगर (अमदावाद)थी पं. श्रीनयविजयगणिए - पोरबन्दरे विराजता गच्छपति श्रीविजयप्रभसूरि उपर लखेलो आ विज्ञप्तिपत्र १०७ श्लोक प्रमाण छे, अने ते पत्रलेखनपद्धतिनी दृष्टिए एकदम सुघटित - सुआयोजित क्रम धरावतो पत्र छे. पत्रलेखके ज विभागो पाडेला छे ते जोईए तो, १-२७ देववर्णन, पछी १-२४ पुरबन्दिरवर्णन, पछी १-२० राजनगरवर्णन तथा धर्मकृत्यवर्णन, पछी १११ मां गुरुवर्णन, २०-२३ थी विज्ञप्ति, २४-२७मां तत्रस्थित मुनिओनां नामादि, २८-३३मां स्वसहवर्ती मुनिओनां नामादि अने सङ्घ तरफथी वन्दन, अने अन्तिम ३ पद्योमां गर्भित विज्ञप्तिपूर्वक समापन छे. लाभपांचमे आ पत्र लखेलो छे.
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