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पार्श्वनाथ, चमत्कारिक चरित्र सांभरी आव्युं अने तेणे जोरथी माथु धूणाव्यु; ते कारणे खळभळी उठेला समुद्रनां असंख्य बिन्दुओ आकाश तरफ ऊछळ्यां. लागे छे के ते जलबिन्दुओ ज पछी तारला थईने आकाशमां गोठवाई गया छे !" आ ज कल्पना लंबाती लंबाती पछीनां बे पद्योमा अवनवा उन्मेषे प्रगट थती जोवा मळे छे.
१२-२२ राजनगर-वर्णन, २३-२४ राणकमेरुदुर्ग-वर्णन, २५थी विज्ञप्ति, -कविनो नामोल्लेख अने पर्युषणसम्बद्ध कार्यकलापवर्णन, ३५ थी ५९ गुरुवर्णन, ६०-६३ विज्ञप्ति तथा प्रणाम. आमां गुरुनुं नाम क्यांय आवतुं नथी; 'तातपाद' शब्दथी ज तेमनो उल्लेख थाय छे, जे विजयसेनसरि परत्वे जणाय छे. ६४६५मां विजयदेवसूरिनुं नामनिर्देश साथे वर्णन छे, तेमां पण तेमने तातपादचरणसेवकलेखे वर्णव्या छे, अने ६७-६८मां वाचक धर्मचन्द्रनं वर्णन थ\ छे ते पत्रलेखकना गुरु होय एम जणाय छे; आ बन्ने पूज्यो तातपादनी साथे हशे तेथी तेमने उद्देशीने वन्दना पाठवता होय तेम लागे छे. सं. १६७०मां बन्ने पूज्यो राजनगरमां चोमासुं साथे रह्या होवानो ऐतिहासिक निर्देश अन्य साधनो द्वारा सांपडे पण छे.
एक अनुमान, ६९मा श्लोक विषे विमर्श करतां, एवं पण थई शके के पत्रलेखक पोते विजयदेवसूरि पासे होय, तेमना गुरु पण त्यांज होय, अने तेमना वती (तथा पोतानी पण) वन्दना, तातपादने, पत्रलेखक पाठवता होय ! (६४६८ना सन्दर्भमां). अलबत्त, आ मात्र अटकळ छे. तेने आधार मळतो नथी. वधु वास्तविक तो विजयदेवसूरि तातपाद साथे होय ए ज लागे. मात्र ६४-६८ पद्योनो सम्बन्ध क्यां केम जोडवो ते जरा गुंचवाडो छे, तेथी आवी अटकळ करवा प्रेरावू पडे छे.
बीजो, (अर्थात् दशमा क्रमनो) पत्र त्रुटित रूपमां तेमज अधूरो प्राप्त छे. तेमां प्रथम ७ पद्यो मङ्गलनां, ८-१९ नगरवर्णननां (नाम नथी जडतुं), २०मुं पद्य चर्मन्वती (चंबल) नदीना किनारे वसेला भृगुपुर नगरनो तथा २१मुं पद्य त्यांना कल्याणमल्ल नामे राजानो निर्देश आपे छे; त्यांथी आ पत्र लखायो छे. बाकी सामान्य रूढ वातो छे. विशेषमा ३३-४२ पद्योमा विजयदेवसूरि-वर्णन छे. ४३४४मां गच्छपति-निश्रावर्ती वाचक धनविजयजी तथा वा. लावण्यविजयजीनुं
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