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________________ ____17 ४४). पर्युषण, कल्प-वाचन, सघळां जिनालयोमां (अभयदालयेषु-४७) १७ प्रकारी पूजा, अमारिप्रवर्तन, आरम्भोनी निवृत्ति, याचकोने दान अने तेओ द्वारा गीतगान, सङ्घवात्सल्य, तपस्या, चैत्यपरिवाडी, आ बधां धर्मकृत्योर्नु वर्णन (४६-५०) तेमज आ बधुं थयुं तेनुं कारण 'विजयसेन' एवा नामनो जप छे (५१) तेवू निरूपण बहु प्रगल्भ रीते थयुं छे. ५२-७८मां गुरुनुं वर्णन थयुं छे, जे वांचतां गुरु प्रत्ये लेखकना चित्तमां केवो/केटलो अहोभाव भर्यो हशे तेनो अन्दाज मळे छे. गुरुनुं चित्त केवू स्वच्छ, पवित्र अने स्वस्थ छे ते वातनुं विविध भङ्गीओथी थयेलुं वर्णन, कविनी कल्पनाशक्ति माटे बहुमान जगाडे तेवू छे. ७९-१०१मां कविनो गुरुना सान्निध्य माटेनो तीव्र तलसाट, तेनी प्राप्तिथी ज पोतानुं सघळु सार्थक होवानो स्पष्ट बोध - आ बधुं, हैयांने भींजवी मूके तेवी रीते रजू थयुं छे. १०२-१०७मां गुरु साथेना मुनिगणनुं स्मरण अने त्यारपछी पोतानी साथेना मुनिओनो उल्लेख करवा साथे तेमना वती तथा स्थानिक सङ्घवती वन्दन-निवेदन थयुं छे. आसो वदि १०ना रोज पत्र लखायाना निर्देश साथे पत्र पूर्ण थाय छे. आ पत्र काव्यविश्वनुं एक नवलुं घरेणुं बनी रहे तेवो छे. आनी प्रति (जे०) सूरतना जैनानन्द पुस्तकालयमांना श्रीकमलसूरिपुस्तकोद्धार फण्डज्ञानभण्डारमाथी नरेशभाई मद्रासी द्वारा, तथा वडोदराना श्रीकान्तिविजयजी जैन शास्त्रसङ्ग्रह (आत्मारामजी जैन लायब्रेरी)मांथी श्रीजयेशभाई चूडगर द्वारा मळेल छे, तेना आधारे आ सम्पादन थयेल छे. (९ अने १०) आ बन्ने पत्रोनुं सम्पादन आ. श्रीचन्द्रसूरिजीए कर्यु छे. बन्ने पत्रो अनुक्रमे गच्छपति श्रीविजयसेनसूरि पर तथा श्रीविजयदेवसूरि उपर मेघचन्द्रमुनि द्वारा लखायेला छे. प्रथम पत्र राणकमेरु दुर्ग (राणकपुर)थी राजनगर, अने बीजो पत्र भृगुपुरथी लखायेल छे. बीजो पत्र अपूर्ण प्राप्त छे. प्रथम पत्रमा ८३ पद्यो छे, तेमां थोडोक अंश त्रुटित छे. बीजा पत्रमा ४४ पद्यो छे. पत्र १मां ४+११ पद्योमा मङ्गलाचरण छे. तेमां ४था (सळंग क्रम लईए तो ८मा) श्लोकमां कविए करेली कल्पना आपणने मस्तक डोलाववा विवश करी मूके तेवी छे : “पार्श्वनाथना चरण पर शेषनाग (चिह्नरूपे) बेठो छे; तेना शिरे वळी आख़ी सृष्टिनो भार छे अने ते समुद्रमां ज वसे छे. तेने एकाएक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520562
Book TitleAnusandhan 2013 07 SrNo 61
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages300
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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