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काव्यचमत्कृति तथा कविप्रतिभानी दृष्टिए जोईए तो आ एक अद्भुत अथवा श्रेष्ठ पत्र छे एम निःसन्देह कहेवू जोईए. १-२७ पद्योमां वीरजिननी स्तवनामां जे विविध भावो अने कल्पनो भर्यां छे ते हृदयने भावविभोर बनाववा समर्थ छे. तेमां पण १२ थी २५ एटलां पद्योमां कविए जे गत-प्रत्यागतरूपे शाब्दिक पुनरावर्तन कर्यु छे ते तो काव्यजगत्मां अजोड गणाय तेवू छे. जुओ - १२मा श्लोकनो पूर्वार्ध -
___ "सेवारसां रक्षदमाश्रयाच्छा भूयादयार त्वयि मे क्षतांहः ।" अने हवे जुओ तेनो उत्तरार्ध -
“हताक्षमेऽयि त्वरया दयाभू-च्छायाश्रमादक्षरसारवासे ॥" ।
पूर्वार्धमां जे अक्षरो जे क्रमे छे, ते ज बधा अक्षरो उत्तरार्धमां ऊलटा क्रमे छे, ते वातनो ख्याल अक्षरेअक्षर मेळवनारने आवी जशे. आवां १ नहि पण सळंग १४-१४ काव्यो रचवां, ए साधारण प्रतिभानुं काम नथी ज.
आ पत्र पं. नयविजयजीए लख्यो छे. उपाध्याय यशोविजयजीना तेओ गुरु छे. तेमनी साथेना साधुओमां विबुध जसविजय (२८)नुं नाम छे ज. वस्तुतः आ पत्रनी काव्यरचना यशोविजयजीनी ज रचना छे एम आ पत्रनो अभ्यास करतां सहजस्पष्ट जणाई आवे तेम छे. तेमणे पोताना गुरु वती अने गुरुना नामे आ पत्र लखेल होय तो ते बनवाजोग छे, अने आमां कशुं अनुचित/अजुगतुं पण नथी. आनन्द एटलो के आ रीते उपाध्यायजीनी एक वधु रचना-प्रसादी आपणने प्राप्त थई शके छे. (१५मो पत्र अने तेमांनो वर्णनक्रम जोईशुं तो आ कल्पनाने समर्थन मळी रहेशे.)
आ पत्रनी जेरोक्स कोपी अमारा निजी सङ्ग्रहमां छे, ते परथी आ सम्पादन करवामां आव्युं छे. आ पत्रना अक्षर पं. नयविजयजीना स्वहस्तना होवानु जणाय छे.
१२मा पत्र जेवो ज, अथवा तेना करतांये अधिक प्रतिभा-कौशल मांगी ले तेवो पत्र एटले आ तेरमो 'महासमुद्रदण्डकमय' पत्र. पं.श्रीदर्शनविजय गणिए सप्तपर्णीपुर (सादडी) थी गच्छपति श्रीविजयप्रभसूरिने लखेल आ पत्र, मङ्गलना त्रुटित ५ श्लोकोने बाजु पर राखीए तो, फक्त एक ज श्लोकनो पत्र छे. आ
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