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________________ ____15 पांचमो पत्र ४० पद्यप्रमाण छे, ते देलवाडामां चातुर्मास रहेला श्रीसाधुरत्नसूरि उपर कपिलपाटक नामे क्षेत्रमा रहेला पत्रलेखके लखेल पत्रनो अंश छे. कपिलपाटक एटले कयुं गाम ? ते ख्याल आवतो नथी. मङ्गल श्लोको, सूरिवर्णन, वन्दन-निवेदन अने पुनः सूरिवर्णन आटलामां ज पत्र पूरो थाय छे. साधुरत्नसूरि ए देवसुन्दरगुरुना एक प्रधान शिष्य हता, अने तेमनां ज्ञान तथा चारित्र वडे तेओ गच्छमां तथा सर्वत्र घणा आदरणीय हता तेवू विविध स्रोतोथी जाणवा मळे छे. छठ्ठो पत्र फक्त २५ श्लोक प्रमाण छे. ते बाउलुपुर (बावळा ?)- स्थित पत्रलेखके सिद्धपुर-स्थित गुरु देवसुन्दरसूरि पर लखेल छे. आमां पण मङ्गलाचरण, गुरुवर्णन, तथा वन्दन-निवेदन, एटलुं ज प्राप्त छे, आगळनो अंश उपलब्ध नथी. अने आ ६ पत्रो साथे अपेक्षाकृत प्राचीन-१५मा शतकना पत्रो पूरा थाय छे, अने आपणो प्रवेश १७मा शतकनी पत्रसृष्टिमां थाय छे. भाषा, प्रस्तुति, भावोआ बधांमां देखीतो तफावत छे ते तुलनात्मक दृष्टिए जोतां जणाई आवशे. पूर्वपत्रोमां जे सरलता अने वास्तविक प्रतिपादन छे, तेनुं स्थान अहीं कल्पनानी मनभावन सृष्टिए तथा अलङ्कारमण्डित सघन प्रस्तुतिए लई लीधुं होवानुं तरत ज जणाय छे. सातमो पत्र विविध छन्दोमय ६३ पद्यात्मक छे, जे गच्छपति विजयसेनसूरि पर देवगिरि रहेला उपाध्याय सत्यसौभाग्य गणिए पाठवेलो छे. १-६ मङ्गलाचरण, ७-२१ देवगिरिवर्णन, २२-२५ लेखक-नाम-निवेदन. पोतानी लघुता दर्शाववा माटे 'शिष्याणु' एवो प्रयोग प्रचलित छे. अहीं ते ज प्रयोग करवानी रीत जुओ : "व्यणुकसमवायिकारणसदृशः"-द्वयणुकनुं समवायी कारण, न्याय-वैशेषिक दर्शनना मते, परमाणु छे; पोते तेना-परमाणुना जेवा लघु-तुच्छ छे एq अहीं निरूपण छे, ते केटलुं सुरुचिकर लागे छे ! वळी, लेखक विविध दर्शनोना पण प्रखर ज्ञाता जणाय छे, एटले तेओ वारंवार अन्यान्य दर्शनोना भावोनो सरस रीते विनियोग पोतानी वात रजू करवा माटे करी शके छे. दा.त. श्लोक २५, ५४ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520562
Book TitleAnusandhan 2013 07 SrNo 61
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages300
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size5 MB
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