SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 237
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जान्युआरी - २०१३ २१७ अनुभवाइ. श्रुतसम्पत्ति करतां शमसम्पत्ति वधु मूल्यवान छे ओवी आपनी टकोर तो जीवनभर नहीं भूलाय. पत्र वांचीने उठेलां प्रतिस्पन्दनो नोंg - १. आचार्य भगवन्त श्री अभयशेखरसूरिजी म.नी श्रुतोपासनाथी तो कोण अजाण हशे ? अमनां पुस्तको, अवलोकन करनारने अमना प्रत्ये आदर न जागे तो ज नवाई. आ संजोगोमां अमना प्रत्ये अनादर सेववानो के अमने नीचाजोj कराववानो विचार पण मने न आवे ओ हकीकत छे. २. सन्मतितर्कगत अक गाथाना अर्थनी विचारणा' (अनुसन्धान ५५ पृष्ठ ८३) आ लेखनो मूळभूत उद्देश गाथाना अर्थनी विचारणा करवानो ज हतो, खण्डन-मण्डननो नहि. अलबत्त ओ लेखमां स्वाभाविक रीते ज ओ विषय परत्वे आज सुधी थयेला चिन्तन पर के रजू थयेला मन्तव्यो पर चर्चाविचारणा करवानुं थयेलुं, परन्तु अमां आशय तो 'वादे वादे जायते तत्त्वबोध:' ओ अनुसार चिन्तनधाराने आगळ वधारवानो ज हतो. आचार्य भगवन्ते पण सप्तभङ्गीविंशिकानी प्रस्तावनामां आ विचारणाने आगळ धपाववानुं स्पष्ट तो नहि, पण आडकतरुं सूचन कर्यु ज छे. अटले अमना मन्तव्य पर चर्चा करवानो इरादो मे ज हतो के कांइक नवो प्रकाश सांपडे. परन्तु दुर्भाग्ये तेओ मारा लखाणथी व्यथित थया होवानुं जणाय छे. आवा सुज्ञ, विद्वान्, तपस्वी अने पीढ गणाता आचार्यने आवी वातमां माळु लागे अने आवेशमां आवीने तेओ मारा जेवा नाना साधु माटे गमे तेम लखे मेवी मने तो कल्पना ज नहीं. मारा गुरुभगवन्तनी औदार्यपूर्ण चित्तवृत्तिने जोइने बधे अम ज हशे अबुं हुं मानी बेठो हतो ! परन्तु स्वभाव अपर्यनुयोज्य होय छे. आचार्य भगवन्तने व्यथित थर्बु पड्युं ओ ओक नाना साधु तरीके मारा माटे शोभास्पद न ज गणाय. ते बदल हुं अन्तःकरणथी क्षमा ज चाहुं. ३. श्रीअभयशेखरसूरिजी म. ओ मारी सरतचूक देखाडी ते माटे तेओ मारा उपकारी छे. घासनी गंजीमांथी सोय शोधी आपवानुं कठिन काम आवा संशोधको ज करी शके. पण आवी सरतचूकने आगळ करीने समग्र लेखने अप्रामाणिक ठराववामां तेओ पोताना माटे ज असमञ्जसताभरी स्थिति सर्जी रह्या छे. आवी छद्मस्थसुलभ अनाभोगजन्य क्षतिओ तो तेमनां विविध लखाणोमां पण दर्शावी शकाय. पण आवी क्षतिओने ओठे ओ लखाणोनी गुणवत्ताने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520561
Book TitleAnusandhan 2013 03 SrNo 60
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages244
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy