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अनुसन्धान - ६० : विज्ञप्तिपत्र - विशेषाङ्क
ग्रन्थावलोकन :
निर्ग्रन्थ परम्परानी अतीतनी शोधयात्रानो परिपाक
खण्ड १
उपा. भुवनचन्द्र
इतिहासनी गवेषणा एटले स्थल-कालनी सीमाओने भेदीने 'अणदीठी भोम'नी यात्रा. कल्पनानी पांखे उड्डयन आमां न थाय, न पोसाय. कोई आत्मसाधक जे निष्ठाथी परम सत्यनी खोज करे, कंइक एवी ज निष्ठा इतिहासना अन्वेषके विकसावी पड़े. इतिहासना अन्वेषके, एक साधकनी जेम ज, अहं - मम - स्वार्थथी ऊपर ऊठीने तथ्योने तपासवानी क्षमता केळववी पड़े छे. श्री मधुसूदन ढांकी - ढांकी साहेब - मां आपणने आवा एक सत्यनिष्ठ शोधकनी झांखी जोवा मळे छे. एमनी शोधयात्रा घणी लांबी छे, अने बहुआयामी छे. शोध - संशोधनना निचोड़रूपे हिन्दी - गुजराती- अंग्रेजी भाषामां अनेक शोधपत्रो अने पुस्तको तेमणे लख्यां छे. भारतीय स्थापत्य, पुरातत्त्व, शिल्प, भाषा वगेरे अनेक विधाओमां एमनी प्रतिभाए चमत्कार दर्शाव्यो छे. जैन पुरातत्त्व-कला-साहित्यमां पण तेमणे नोंधनीय काम कर्तुं छे. जैन संघ एक रीते गौरव लई शके के पद्मभूषण उपाधिप्राप्त अने आन्तरराष्ट्रीय ख्याति धरावता आवा मूर्धन्य इतिहासविद - पुरातत्त्वशास्त्रीनी सेवाओ जैन संघने मळी छे.
जैन इतिहास - पुरातत्त्व - कलाना विषयमां तेमणे लखेला गुजराती अभ्यासलेखोनो संग्रह 'निर्ग्रन्थ लेख समुच्चय' एवा नामे बे भागमां अगाऊ प्रसिद्ध थई चूक्यो छे. आ ज विषयना तेमना अंग्रेजी लेखोनो संग्रह हवे 'स्टडीझ इन निर्ग्रन्थ आर्ट एन्ड आर्किटेक्चर' एवा नामे प्रकाशित थयो छे, जेमां २२ जेटला लेखो समाववामां आव्या छे. जैन परम्पराना प्राचीन पुरातत्त्वकला-साहित्यने ढांकी साहेब 'निर्ग्रन्थ कला' के 'निर्ग्रन्थ साहित्य' तरीके ओळखावे छे ते योग्य ज छे. श्वेताम्बर - दिगम्बर जेवा पेटाविभाग अस्तित्वमां आव्या ते पहेलां जैन परम्परा 'निर्ग्रन्थ' एवा नामे ज प्रसिद्ध हती.
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भूतकालमां पाछा फरी शकातुं नथी, पण निरीक्षण-परीक्षण अने अभ्यासना बळे मेधावी संशोधक दूर- सुदूरना अतीतना अंकोडा केवी रीते
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