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________________ अनुसन्धान - ६० : विज्ञप्तिपत्र - विशेषाङ्क - खण्ड १ ३. संस्थान से आचार्य तुलसी एवं आचार्य महाप्रज्ञजी के निर्देशन में तैयार निम्न कोश ग्रन्थ भी महत्त्वपूर्ण हैं १. आगमशब्दकोश, २. देशीशब्दकोश, निरुक्तकोश, ४. एकार्थककोश, ५. जैन आगम वनस्पतिकोश, ६. जैन आगम प्राणीकोश, ७. श्री भिक्षु आगमकोश भाग १ एवं भाग २ आदि । २०० — प्राकृत नाटक यहाँ यह ज्ञातव्य है कि प्राचीन नाटक और सट्टक प्रायः संस्कृत भाषा की रचनाएँ माने जाते है । किन्तु संस्कृत नाटकों में प्रायः बहुल अंश प्राकृत का ही होता है । अत: मुख्यता प्राकृतों की होने से उन्हें प्राकृत भाषा का भी माना जा सकता है। ये नाटक भी जैन एवं अजैन दोनों परम्पराओं में लिखे गये है । कुछ नाटक ऐसे भी हैं, जो मात्र प्राकृत भाषा में रचित हैं, और सट्टक के रूप में जाने जाते हैं । यथा- कप्पूरमंजरी, विलासवइ, चंदलेहा, आनन्दसुंदर, सिंगारमंजरी आदि । जैन नाटककारों में दिगम्बर हस्तिमल प्रसिद्धहै । इनके निम्न नाटक उपलब्ध है- अंजनापवनंजय, मैथिलीकल्यांण, विक्रान्तकौरव, सुलोचना और सुभद्राहरण । श्वेताम्बरों में आचार्य हेमचन्द्र के शिष्य रामचन्द्र ने जहाँ एक और संस्कृत में नाट्यदर्पण नामक ग्रन्थ लिखा, वही प्राकृत संस्कृत मिश्रित भाषा में अनेक नाटकों की भी रचना की । यथाकौमुदीमित्रानन्द, नलविलास यादवाभ्युदय, रघुविलास, राघवाभ्युदय, वनमाला (नाटिका), सत्यहरिश्चन्द्र, मल्लिकामकरन्द । इसके अतिरिक्त अजैन लेखको द्वारा रचित नाटकों, सट्टको और विधी आदि में प्राकृत के अंश मोजूद है। ज्योतिष -- यद्यपि चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति प्राकृत भाषा में रचित ज्योतिष सम्बन्धी प्रमुख आगम ग्रन्थ है, किन्तु इनके अतिरिक्त भी जैन परम्परा में अनेक ज्योतिष सम्बन्धी ग्रन्थ प्राकृत भाषा में भी रचित हैं यथा- गणिविज्जा, अंगविज्जा, जोइसकरंडक (ज्योतिषकरण्डक प्रकीर्णक), जोतिससार, विवाह - मण्डल, लग्गसुद्धि, दिणसुद्धि, गणहरहोरा, जोइसदार, जोइसचक्कवियार, जोइस्सहीर आदि । इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनाचार्यो ने प्राकृत भाषा में विपुल ग्रन्थों का सर्जन किया था । संस्कृत भाषा में तो उनके अनेक ज्योतिष सम्बन्धी ग्रन्थ है ही । 'आयनाणतिलय' नामक फलित ज्योतिष का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520561
Book TitleAnusandhan 2013 03 SrNo 60
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages244
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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