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________________ जान्युआरी २०१३ भाषा में कुछ चरित्रग्रन्थ लिखे, किन्तु संख्या की वैदिक एवं जैन धारा के संस्कृत नाटकों में भी बहुल अंश प्राकृत भाषा में ही होता है, वे भी प्राकृत साहित्य की एक महत्त्वपूर्ण विधा है । इसकी चर्चा स्वतन्त्र शीर्षक के द्वारा आगे करेंगे । यद्यपि अपभ्रंश भी प्राकृत भाषा से ही विकसित हुई है, और प्राकृतों तथा आधुनिक उत्तरभारतीय प्रमुख भाषाओं के मध्य योजक भी रही है । इस अपभ्रंश में रचित श्वेताम्बर, दिगम्बर आचार्यो ने निम्न चरितकाव्य लिखे यथा - रिट्ठनेमिचरिउ, सिरिवालचरिउ, वड्ढमाणचरिउ, पउमचरिउ, सुदंसणचरिउ, जम्बूसामीचरिउ, णायकुमारचरिउ, मदनपराजयचरिउ आदि । ज्ञातव्य है कि ये सूचनाएँ मेरी जानकारी तक ही सीमित है । सम्भव है कि जैनकथा साहित्य के प्राकृत भाषा में रचित अनेक ग्रन्थ मेरी जानकारी में नहीं होने से छूट गये हो, इस हेतु मैं क्षमाप्रार्थी हूँ । १९९ प्राकृत में आगम ग्रन्थों, आगमिक व्याख्याओं, आगमिक विषयों एवं उपदेशपरक ग्रन्थों के अतिरिक्त भी साहित्य की अन्य विधाओं पर भी ग्रन्थ लिखे गये हैं । प्राकृत के व्याकरण से सम्बन्धित ग्रन्थ प्राकृत भाषा में नहीं लिखे गये हैं, वे मूलतः संस्कृत में रचित हैं और संस्कृत भाषा के आधार पर प्राकृत के शब्द रूपों को व्याख्यायित करने का प्रयत्न करते है, इनके रचयिता भी जैन और अजैन दोनों ही वर्गों से है । इनके ग्रन्थों में वररुचिकृत प्राकृतप्रकाश, मार्कण्डेयरचित प्राकृतसर्वस्व, हेमचन्द्रकृत सिद्धहेम व्याकरण का आठवाँ अध्याय प्रमुख हैं । प्राकृत कोश ग्रन्थों में धनपालकृत पाइयलच्छीनाममाला, हेमचन्द्रकृत रयणावली अर्थात् देशीनाममाला प्रसिद्ध है । इसके अतिरिक्त भी अभिमानसिंह, गोपाल, देवराज आदि ने भी देश्यशब्दों के कोश ग्रन्थ रचे थे, किन्तु वे आज अनुपलब्ध हैं । इसी प्रकार द्रोण, पादलिप्तसूरि, शीलांक रचित प्राकृत शब्दकोशों के सम्बन्ध में आज विशेष जानकारी उपलब्ध नहीं है । प्राकृत के कोशों में विजयराजेन्द्रसूरिकृत 'अभिधानराजेन्द्रकोश', शेठहरगोविन्ददासकृत 'पाइयसद्दमहण्णव', मुनिरत्नचन्द्रकृत 'अर्धमागधीकोश', पाइयसद्दमहण्णव आधारित के. आर. चन्द्रा का प्राकृत हिन्दी कोश आदि ही प्रमुख है । इसके अतिरिक्त प्राकृत शब्द रूपों को लेकर जैन विश्वभारती T Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.520561
Book TitleAnusandhan 2013 03 SrNo 60
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2013
Total Pages244
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size9 MB
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