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जान्युआरी - २०१३
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(किसी के मत से 'वीरस्तव' और 'देवेन्द्रस्तव' दोनों का समावेश एक में है और 'संस्तारक' के स्थान में 'मरण समाधि' और 'गच्छाचारपयन्ना' है ।) कल्पसूत्र (पर्युषण कल्प-जिनचरित, स्थविरावलि, समाचारी) यतिजीतकल्प (सोमप्रभसूरि) श्राद्धजीतकल्प (धर्मघोषसूरि) पाक्षिकसूत्र (आवश्यक सूत्र का अंग है) क्षमापनासूत्र (आवश्यक सूत्र का अंग है) वंदित्तु (आवश्यक सूत्र का अंग है)
ऋषिभाषित ५३-६२ वीस अन्य पयन्ना- अजीवकल्प, गच्छाचार, मरणसमाधि,
सिद्धप्राभृत, तीर्थोद्गारिक, आराधनापताका, द्वीपसागरप्रज्ञप्ति, ज्योतिषकरण्डक, अंगविद्या, तिथिप्रकीर्णक, पिण्डविशुद्धि, सारावली, पर्यन्ताराधना, जीवविभक्ति, कवचप्रकरण, योनि
प्राभृत, अंगचूलिया, वग्गचूलिया, वृद्धचतुःशरण, जम्बूपयन्ना। ६३-८३ ग्यारह नियुक्ति-(भद्रबाहुकृत)
आवश्यकनियुक्ति, दशवैकालिकनियुक्ति, उत्तराध्ययननि०, आचाराङ्गनि०, सूत्रकृताङ्गनि०, सूर्यप्रज्ञप्तिनि० (अनुपलब्ध), बृहत्कल्पनि०, व्यवहारनि०, दशाश्रुतस्कन्धनि०-ऋषिभाषितनि०
(अनुपलब्ध), संसक्तनि० । ८४ विशेषावश्यकभाष्य ।
ये ८४ आगम ग्रन्थ आज भी उपलब्ध हैं । आगमों का रचना काल
सामान्यतया आगम साहित्य में अंग आगमों को गणधरकृत और अंगबाह्य ग्रन्थों को आचार्यकृत माना जाता है, किन्तु बौद्धिक ईमानदारी से विचार करने पर उपलब्ध सभी अंग आगम भी किन्हीं एक गणधर की या गणधरों के समूह की रचना हो ऐसा नहीं माना जा सकता है । क्योंकि अंग
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