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१२ पं. कमलविजयजी पत्तन (-पाटण) जीर्णदुर्ग १३ लालविजयजी नीतिपद्र (-?) पुरबन्दिर (-पोरबन्दर) १४ पं. लालकुशल प्रह्लादनपुर (-पालनपुर) दीव १५ पं. हीरविमल साहिज्यपुर (-?). देवकपत्तन १६ पं. कल्याणसागर रामदुर्ग
पुरबन्दिर १७ पं. आगमसुन्दर* मालेपुर
जीर्णदुर्ग आ पत्रो कोई विशेष अतिहासिक विगत धरावता नथी. अलबत्त पत्रोमां सहवर्ती साधुओनां नाम, प्रणाम, अनुप्रणाम, नगरनां नाम व. पर विचार करीओ तो तिहासिक विगतो सांपडे खरी. जेमके पत्रक्रमांक ९ के जे उपा. विनयविजयजी द्वारा लखायो छे तेमां श्रीविजयप्रभसूरिजीना सहवर्ती वाचक विनीतविजयजीने अनुनति जणाववामां आवी छे. बीजी तरफ पं. नयविजयजी (पत्र-११) विनीतविजयजीने प्रणाम जणावे छे जे सूचवे छे के उपा. विनयविजयजी पं. विनीतविजयजीथी ज्येष्ठ हशे. आवी अनेक विगतो आ पत्रोमांथी मळी शके, पण ते माटे अन्य सामग्री विपुल प्रमाणमा जोईओ.
तिहासिक विगतोनी अल्पताने नजरअंदाज करीओ तो काव्यतत्त्व अने गुरुभक्तिनी रीते आ पत्रसाहित्य अजोड छे. जगतनी कोई अन्य गुरुशिष्य परम्परामां आवा पत्रो आटला विपुल प्रमाणमां लखाया होवानुं जाणमां नथी. पत्र लखनार व्यक्ति चाहे मुनि होय के चाहे पण्डित अथवा उपाध्याय होय - पत्र लखती वखते तेने हैयुं गुरुबहुमानमां वहावी दीधुं होय तेवी प्रतीति आ पत्रो वांचती वखते थया सिवाय रहेती नथी. पत्र लखनारे पत्र लखवा खातर नथी लख्यो, पण लखती वेळा पोतानी तमाम विद्वत्ता अने प्रतिभाने भक्तिना वाहन तरीके कामे लगाडी छे. परिणामे आ पत्रोना घणाखरा श्लोको काव्यकला के कल्पनावैभवनी दृष्टिले उत्कृष्ट कोटिना बन्या छे. जुओ -
लक्ष्मालयो मङ्गलपङ्क्तिहेतुः, स्वकीयरूपाल्पितमीनकेतुः । संसारवारांनिधिसान्द्रसेतुः, शिवाय भूयाच्चतुरङ्गकेतुः ॥ श्लोक ८, पत्र १६
पत्रना बहारना भागे पं. पुण्यसुन्दरनुं नाम छे, जेमनो पत्रमा लेखकना सहवर्ती तरीके उल्लेख छे.
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