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________________ फेब्रुआरी - २०१२ १६३ टीकाओने बाद करतां क्यांय त्रैराशिको माटे आजीविक के आजीविको माटे त्रैराशिक शब्द वपरायो होवानुं जाणमां नथी. खुद नन्दीना रचयिताले पण बन्ने माटे अलग-अलग विधानो ज करेलां छे. तो नन्दीना टीकाकारोओ शा माटे बन्नेने ओक गण्या ? आनो अर्थ ओवो समजी शकाय के जैनमतनी विरुद्ध सिद्धान्तो धरावती, अने छतांय ओमना स्थापको मूलतः जैन निर्ग्रन्थ होवाने लीधे जैन आचार-विचारोथी प्रभावित तेवा प्रायः परस्पर सरखा आचार-विचार धरावती, आ बे परम्पराओ अमुक काल सुधी समान्तरपणे वहेती रही होय, अने धीरे धीरे जैनमतनी विरुद्ध ओक थती थती नन्दी-चूर्णिना समय सुधीमां परस्परमां विलीन थई गई होय अने तेथी चूणि, टीका व.मां आजीविको अने त्रैराशिको बन्नेने अक गणाववामां आव्या होय ? __ अहीं ओक महत्त्वनो मुद्दो ओ उपस्थित थाय छे के त्रैराशिक मतनो उद्भव खरेखर क्यारथी थयो गणाय ? श्रीगणधर-विरचित दृष्टिवादनां केटलाक अंगोनो विमर्श जो त्रैराशिक मतनी विचारणा प्रमाणे थतो होय तो त्रैराशिक मतने ओछामां ओछु दृष्टिवादनी रचना जेटलो प्राचीन गणवो पडे. ज्यारे कल्पसूत्रनी स्थविरावलीनो "थेरेहिंतो णं छडुलूएहिंतो रोहगुत्तेहिंतो कोसियगुत्तेहिंतो तत्थ णं तेरासिया निग्गया ।" आ पाठ ओम दर्शावे छे के रोहगुप्तथी त्रैराशिक मत उद्भव्यो. आ बे परस्पर विरोधी विधानोनी संगति बे रीते शक्य छे. (१) दृष्टिवाद साथे सम्बन्धित त्रैराशिकमत अने रोहगुप्तथी प्रस्थापित त्रैराशिकमत विभिन्न होय.' (२) बन्ने त्रैराशिकमतनो अर्थसन्दर्भ अंक ज होय, परन्तु दृष्टिवादगत त्रैराशिक-विचारणा पोतानाथी भिन्न मतना सापेक्ष स्वीकारपूर्वक होय. ज्यारे रोहगुप्ते प्ररूपेलो त्रैराशिकमत जैनमतनी अवगणना करवा पूर्वक निरपेक्षपणे त्रण राशि स्वीकारतो होय. जो आ वात यथार्थ होय तो रोहगुप्ते सर्वथा नवो मत नहोतो प्ररूप्यो, परन्तु प्राचीन मतने ज पोतानी रीते अनुकूल स्वरूपे ओटले के ओकान्तपणे स्वीकार्यो हतो ओम समजवू जोइओ. रोहगुप्त वाद दरमियान जे मक्कमताथी त्रण राशि प्ररूपे छे ते जोतां तेमणे त्रण राशि विशे मे पहेलां पण विचार्यु हशे ओम जणाय छे. बनी शके के ओ विचारणा दृष्टिवादना १. जो के नन्दीसूत्रनी टीकाओमां व्यावर्णित दृष्टिवाद-सम्बन्धित त्रैराशिकमत अने रोहगुप्तना त्रैराशिकमत वच्चे कोई तफावत नथी जणातो.
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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