________________
१६२
अनुसन्धान-५८
तं जहा दव्वट्ठितो पज्जवट्ठितो उभयट्ठितो । अओ भणियं - सत्त तेरासिय त्ति । सत्त परिकम्माइं तेरासियपासंडत्था तिविहाए णयचिंताए चिन्तयन्तीत्यर्थः१ ॥"
आ पाठ प्रमाणे बे वातो फलित थाय छे : १. आजीविकमत ओ ज 'त्रैराशिकमत' तरीके ओळखातो हतो. जीव अजीव अने जीवाजीव, लोक अलोक अने लोकालोक - ओम सर्वत्र त्रण राशि स्वीकारवाने लीधे गोशालकना अनुयायीओ ज ‘त्रैराशिक' कहेवाता हता. २. त्रैराशिको (अथवा अवचूरिना मते पूर्वसूरिओ त्रैराशिकमतने नयचिन्ता पूरतो स्वीकारीने), साते परिकर्मोने त्रण नयो - द्रव्यार्थिक, पर्यायार्थिक अने उभयार्थिक नयथी विचारता हता. आमां सातमु परिकर्म जैनसिद्धान्त प्रमाणे नहोतुं. ओ तो आजीविक-त्रैराशिकमतने ज सम्मत हतुं, अने ओ रीते ज दृष्टिवादमां स्थान पामतुं हतुं. तेमज जैनसमयसम्मत प्रथम छ परिकर्मोने नयचतुष्क - संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र अने शब्द नयोथी विचारवानी मूल जैनदर्शननी व्यवस्था हती.
आ पछी दृष्टिवादगत 'सूत्र'नी व्यवस्था दर्शावता नन्दीसूत्रमा जणावायु छे के “इच्चेयाइं बावीसं सुत्ताइं छिण्णच्छेयणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए सुत्ताई... अच्छिन्नछेयणइयाइं आजीवियसुत्तपरिवाडीए...तिगणइयाइं तेरासियसुत्तपरिवाडीए... चउक्कणइयाइं ससमयसुत्तपरिवाडीए सुत्ताइं । एवामेव सपुव्वावरेणं अट्ठासीति सुत्ताइं भवंतीति मक्खायं ॥"
आनो अर्थ आम थाय छे – उपर जणाव्यां ते बावीस सूत्रोने जो छिन्नच्छेदनयथी जोवामां आवे तो ओ जैनमतने सम्मत सूत्रो बने छे अने अच्छिन्नच्छेदनयथी जोइओ तो आजीविकमतने सम्मत सूत्रो बने छे. अ ज रीते आ सूत्रोना विषयभूत अर्थने जो चार नयथी विचारीओ तो ओ सूत्रो स्वसमयसम्मत अने त्रण नयथी विचारता त्रैराशिकमतसम्मत बने छे. आम कुल मळीने ८८ सूत्रो दृष्टिवादमां समाविष्ट बने छे..
उपरोक्त मूल नन्दीसूत्र अने तेनी टीकाओमा आवता 'त्रैराशिक' अंगेना उल्लेख थोडोक विचार मांगे छे.
* आजीविकमतने लगता जे निर्देशो अत्यारे उपलब्ध छे अमां ओ मत त्रण राशि स्वीकारतो होय अवो कोई ज निर्देश नथी देखातो. नन्दीनी १. पृष्ठ १६१ पर छे. २. छिन्नच्छेदनय अने अच्छिन्नच्छेदनयना अर्थ माटे जुओ नन्दीनी चूर्णि-टीकाओ ।