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अनुसन्धान-५८
तो कहा जा सकता है कि गुजराती भाषा मे जैन कथाओं पर लगभग तीन सौ से अधिक ग्रन्थ उपलब्ध है। गुजराती कथा लेखकों में रतिलाल देसाई, चुन्नीलाल शाह, बेचरदास दोशी, मोहनलाल धामी, विमलकुमार धामी, कुमारपाल देसाई, धीरजलाल शाह तथा आचार्य भद्रगुप्तसूरि, भुवनभानुसुरि, शीलचन्द्रसूरि, प्रद्युम्नसूरि, रत्नसुन्दरसूरि, चन्द्रशेखरसूरि आदि प्रमुख है । इसके साथ ही दिगम्बर परम्परा में भी कुछ कथा ग्रन्थ हिन्दी एवं मराठी मे लिखे गये है। इसके अतिरिक्त गणेशजी लालवानी ने बंगला में भी कुछ जैन कथाएं लिखी
है।
जहां तक दक्षिण भारतीय भाषाओं का प्रश्न है तमिल, कन्नड में अनेक जैन कथा ग्रन्थ उपलब्ध है। इनमें तमिल ग्रन्थो में जीवनकचिन्तामणि, श्रीपुराणम् आदि प्रमुख है । इसके साथ कन्नड में भी कुछ जैन कथा ग्रन्थ है, इनमें 'आराधनाकथै' नामक एक ग्रन्थ है, जो आराधानाकथाकोश पर आधारित है। इस प्रकार हम देखते है कि जैन कथा साहित्य बहुआयामी होने के साथ-साथ विविध भाषाओं में भी रचित है। तमिल एवं कन्नड़ के साथसाथ परवर्ती काल में तेलुगु, मराठी आदि में भी जैन ग्रन्थ लिखे गये है। विभिन्न कालखण्डों का जैन कथा साहित्य
____ कालिक दृष्टि से विचार करने पर हम पाते है कि जैन कथा साहित्य ई.पू. छठी शताब्दी से लेकर आधुनिक काल तक रचा जाता रहा है । इस प्रकार जैन कथा साहित्य की रचना अवधि लगभग सत्तावीस सौ वर्ष है । इतनी सुदीर्घ कालावधि में विपुल मात्रा में जैन आचार्यों ने कथा साहित्य की रचना की है । भाषा की प्रमुखता के आधार पर कालक्रम के विभाजन की दृष्टि से इसे निम्न पांच कालखण्डों में विभाजित किया जा सकता है
१. आगमयुग - ईस्वी पूर्व ६ ठी शती से ईसा की पाँचवी शती तक।
२. प्राकृत आगमिक व्याख्यायुग- ईसा की दूसरी शती से ईसा की ८ वी शती तक ।
३. संस्कृत टीका युग या पूर्वमध्ययुग- ईसा की ८ वी शती से १४ वीं शती तक ।