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________________ फेब्रुआरी - २०१२ १३५ वर्णन कर व्यक्ति में ज्ञाता दृष्टाभाव या साक्षीभाव उत्पन्न करना । विभिन्न भाषाओं में रचित जैन कथा साहित्य भाषाओं की दृष्टि से विचार करें तो जैन कथा साहित्य प्राकृत, संस्कृत, कन्नड, तमिल, अपभ्रंश, मरूगुर्जर हिन्दी, मराठी, गुजराती और क्वचित् रूप में बंगला में भी लिखा गया है । मात्र यही नहीं प्राकृत और अपभ्रंश में भी उन भाषाओं के अपने विविध रूपों में वह मिलता है । उदाहरण के रूप में प्राकृत के भी अनेक रूपों यथा अर्धमागधी, जैन शौरसेनी, महाराष्ट्री आदि में जैन कथा साहित्य लिखा गया है और बहुत कुछ रूप में आज भी उपलब्ध है । गुणाढ्य ने अपनी बृहत्कथा पैशाची प्राकृत में लिखी थी, यद्यपि दुर्भाग्य से आज वह उपलब्ध नहीं है । आज जो जैन कथा साहित्य विभिन्न प्राकृत-भाषाओं में उपलब्ध है उनमें सबसे कम शौरसेनी में मिलता है। उसकी अपेक्षा अर्धमागधी या महाराष्ट्री प्रभावित अर्धमागधी मे अधिक है। क्योंकि उपलब्ध आगम और प्राचीन आगमिक व्याख्याएं इसी भाषा में लिखित हैं । महाराष्ट्री प्राकृत में जैन कथा साहित्य उन दोनों भाषाओं की अपेक्षा भी विपुल मात्रा में प्राप्त होता है और इसके लेखन में श्वेताम्बर जैनाचार्यो एवं मुनियों का योगदान अधिक है । दिगम्बर आचार्यों की रुचि अध्यात्म और कर्म साहित्य में अधिक रही । फलतः भगवती आराधना में संलेखना के साधक कुछ व्यक्तियों के नाम निर्देश को छोड़कर उसमें अधिक कुछ नहीं मिलता है । यद्यपि कुछ जैन नाटकों में शौरसेनी का प्रयोग अवश्य देखा जाता है, इस परम्परा में हरिषेण का बृहत्कथाकोश ही एक महत्वपूर्ण ग्रन्थ माना जा सकता है । इसके अतिरिक्त आराधना कथाकोश भी है । अर्धमागधी और अर्धमागधी और महाराष्ट्री के मिश्रित रूप वाले आगमों और आगमिक व्याख्याओं में जैन कथाओं की विपुलता है, किन्तु उनकी ये कथाएं मूलतः चरित्र-चित्रण रूप तथा उपदेशात्मक ही है, साथ ही वे नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास करने की दृष्टि से लिखी गई है। आगमिक व्याख्याओं में नियुक्ति साहित्य में मात्र कथा का नाम-निर्देश या कथा-नायकके नाम का निर्देश ही मिलता है । इस दृष्टि से नियुक्तियों की स्थिति भगवती आराधना के समान ही है, जिनमें हमें कथा निर्देश तो मिलते है, किन्तु कथाएं नहीं
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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