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________________ १३४ अनुसन्धान-५८ भी उल्लेख मिलता है। दशवैकालिक में अर्थकथा, कामकथा, धर्मकथा और मिश्रकथा- ऐसा भी एक चतुर्विध वर्गीकरण मिलता है और वहां इन कथाओं के लक्षण भी बताये गये है । यह वर्गीकरण कथा के वर्ण्य विषय पर आधारित है । पुनः दशवैकालिक में इन चारों प्रकार की कथाओं में से धर्मकथा के चार भेद किये गये हैं । धर्मकथा के वे चार भेद है – आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेगिनी और निवेदनी । टीका के अनुसार पापमार्ग के दोषों का उद्भावन करके धर्ममार्ग या नैतिक आचरण की प्रेरणा देना आक्षेपणी कथा है । अधर्म के दोषों को दिखाकर उनका खण्डन करना विक्षेपणी कथा है । वैराग्यवर्धक कथा संवेगिनी कथा है । एक अन्य अपेक्षा से दूसरो के दुःखों के प्रति करुणाभाव उत्पन्न करनेवाली कथा संवेगिनी कथा है। जबकि जिस कथा से समाधिभाव और आत्मशांति की उपलब्धि हो या जो वासना और इच्छाजन्य विकल्पों को दूर कर निर्विकल्पदशा में ले जाये वह निर्वेदनी कथा है । ये व्याख्याएं मैंने मेरी अपनी समज के आधार पर की है । पुनः धर्मकथा के इन चारों विभागों के भी चार-चार उपभेद किये गये है किन्तु विस्तार भय से यहां उस चर्चा में जाना उचित नहीं होगा। यहां मात्र नाम निर्देश कर देना ही पर्याप्त होगा। (अ) आक्षेपनी कथा के चार भेद है - १. आचार २. व्यवहार ३. प्रज्ञप्ति और ४. दृष्टिवाद. (ब) विक्षेपनी कथा के चार भेद है – १. स्वमत की स्थापना कर, फिर उसके अनुरूप परमत का कथन करना. २. पहले परमत का निरूपण कर, फिर उसके आधार पर स्वमत का पोषण करना. ३. मिथ्यात्व के स्वरूपकी समीक्षा कर फिर सम्यक्त्व का स्वरूप बताना और ४. सम्यक्त्व का स्वरूप बताकर फिर मिथ्यात्व का स्वरूप बताना । (स) संवेगिनी कथा के चार भेद है – १. शरीर की अशुचिता, २. संसार की दुःखमयता और ३. संयोगो का वियोग अवश्यभावी है – ऐसा चित्रण कर ४. वैराग्य की ओर उन्मुख करना । (द) निर्वेदनी कथा का स्वरूप है – आत्मा के अनन्त चतुष्टय का
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
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