SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फेब्रुआरी - २०१२ ११७ नाभि उपरहो रुडो लहयो, निगोहसंस्थान इणिपरि कहयो, नाभि नीचइ ते रूडो जांण, उचो मँडो सादि वखांण ॥६५॥ वांमनसंघयण इणि परि जोय, मस्तक-ग्रीवा-हाथ-पग रूडो होइ, कुबज पुठइ उदर असार, एकासीमो पाप विचार ॥६६।। सघलां अंगोपांग करूप, हुंडकनो ए कह्यो सरूप; ब्यासी भेद ते पापना जोय, समदीठी ते छांडे सोय ॥६७|| दुहा श्रीजिनवरजी भाखीया, प्रश्नव्याकरण मझारि, पाप आवइ जिणे थानिकें, तेहना पांच प्रकार ॥६८।। भेद बितालीस जे कह्या, सूत्रमांहि वीस्तार, समकितधारी ते सही, जांणइ एह विचार ॥६९।। चोपड़ इंद्री पांच ते जिनवर कही, पाप आवइ तिणें करी सही, क्रोध-मांन-माया-लोभ ए च्यार, प्रणातपात जीवनो संहार ॥७०॥ मृषावाद जूठो उचरइ, अदतांदान ते चोरी करइ, मैथुन जे परस्त्रीनी सेव, परिग्रह उपरि मन नितमेव ॥७१।। मन वचन कायाना योग, वीपरीतपणइ वरतावें लोग, काया अजयणा वरते जेह, कायकीक्रीया कहीए तेह ॥७२॥ हल-उखल-घरटी-कोदाल, अधिकरणनी क्रिया भाल, जीव-अजीव उपरि रीस, पाउसीक्रिया ने निसदीस ॥७३।। परतापनी क्रिया जे धरइ, पण आपणने पीडा करें, प्रणातपातकी जीवनो नास, आरंभीया करसण हाट प्रकास ॥७४॥ अनेक पदार्थ उपरि ममता सही, परगहीयाक्रिया ते कही, मायावतीयाक्रिया जांण, परनी वंचना करइ अजाण ॥७५।। मथ्यादसणवती हेव, कुगर-कुदेव-कुधर्मनी सेव, अपचखांणी पचखाण नव धरइ, स्त्रीपरसंसा इष्टकी करइ ॥७६।। पिष्टकीक्रिया ईम उचरइ, भलो भूडो देखी राग-द्वेषज करइ, पाडुचीक्रिया ते कहिवाय, किणही कने वस्त देखी न जाय ॥७७||
SR No.520559
Book TitleAnusandhan 2012 03 SrNo 58
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilchandrasuri
PublisherKalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
Publication Year2012
Total Pages175
LanguageSanskrit, Prakrit
ClassificationMagazine, India_Anusandhan, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy